नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना (एसजीबी) की शुरुआत की थी. सरकार इससे मिलने वाले निवेश के जरिए चालू खाता घाटे को पाटने का प्रयास करना चाहती थी. हालांकि, गोल्ड बॉन्ड की एवज में निवेशक को दी जाने वाली रकम इतनी अधिक हो रही है कि सरकार के लिए इसे अब जारी रखना मुश्किल हो गया है. सरकार ने वित्त वर्ष 16 से इसकी शुरुआत की थी और पिछले साल तक एसजीबी के 67 हिस्से जारी किये जा चुके हैं.
हालांकि, इस वित्त वर्ष का 5वां महीना शुरू हो चुका है और सरकार ने अभी तक एसजीबी को लेकर कोई घोषणा नहीं की है. जानकार मान रहे हैं कि एसजीबी को इस फॉर्म में तो जारी नहीं रखा जा सकता. खबरे हैं कि सरकार अब एसजीबी की गहन समीक्षा कर रही है.
उल्टा पड़ा दांव
एसजीबी को जब लॉन्च किया गया तो सरकार को उम्मीद थी कि उसे रिटर्न पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा. क्योंकि उससे पिछले 3 वर्षों में सोने पर नेगेटिव रिटर्न आया था. 2012 में गोल्ड 31,050 प्रति 10 ग्राम था. 2013 में यह 4 फीसदी से ज्यादा घटकर 29600 रुपये पर आ गया. इसके अगले साल यानी 2014 में इसमें 5.38 फीसदी की गिरावट दिखी और सोना 28006 रुपये प्रति 10 ग्राम पर आ गया. अगले साल यानी 2015 (वित्त वर्ष 2015-16) में भी सोने की कीमत करीब 6 फीसदी घटी. तब सोना 26,343 रुपये पर आ गया. इसी साल सरकार ने एसजीबी लॉन्च किया. इससे फिजिकल गोल्ड में निवेश पर लगाम लगने की उम्मीद थी.
सरकार ने जैसे ही यह योजना लॉन्च की सोने की रेट तेजी से ऊपर की ओर भागने लगे. 2016 में सोना 8.65 फीसदी चढ़ा. 2019 औक 2020 में तो क्रमश: 12 और 38 फीसदी का उछाल आ गया. 2016 में जो गोल्ड 28623 रुपये का था वह आज 71510 रुपये पर पहुंच गया. बीती 5 अगस्त को कई गोल्ड बॉन्ड मैच्योर हुए जिसमें सरकार को भारी-भरकम अमाउंट निवेशकों को देना पड़ा. इसे उदाहरण से समझें. एसजीबी की पहली सीरीज में एक बॉन्ड 2684 रुपये पर जारी किया गया. कुल 9.13 लाख बॉन्ड जारी किए गए. सरकार को इससे 245 करोड़ रुपये से अधिक प्राप्त हुए. उदाहरण के लिए लोगों ने अपने निवेश को 8 साल तक बनाए रखा. अब हर बॉन्ड का रिडेंप्शन प्राइस 6132 रुपये हो गया जिसकी वजह से सरकार को 560 करोड़ रुपये चुकाने पड़े. इतना ही नहीं 49 करोड़ रुपये ब्याज में भी दिए गए. आरबीआई ने जो पैसा जुटाया उस पर 148 परसेंट का रिटर्न चुकाया.
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FIRST PUBLISHED : August 7, 2024, 20:25 IST