मॉरिशस रूट : कालेधन की यह ‘बदनाम गली’ आखिर है क्‍या?

हाइलाइट्स

एफडी आई इनवेस्‍टमेंट का एक प्रमुख रूट है मॉरिशस.मॉरिशस एक टैक्‍स हेवन देश है और भारत के साथ विशेष करार है. आरोप लगते हैं मॉरिशस रूट का इस्‍तेमाल कालेधन को सफेद करने को होता है.

नई दिल्‍ली. अमेरिका की शार्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया है अडानी ग्रुप के विदेशी फंड में माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच हिस्‍सेदारी थी और इन दोनों ने भी उसी तरह फंड में जटिल स्ट्रक्चर का इस्तेमाल करते हुए पैसा लगाया, जैसे गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी ने किया था. जिस फंड माधबी और उनके पति द्वारा पैसा लगाने का आरोप लगाया गया है, इसका नाम ‘आईपीई प्‍लस फंड’ है, जो मॉरिशस में रजिस्‍टर्ड है. हिंडनबर्ग द्वारा पहले अडानी समूह पर जारी रिपोर्ट में भी मॉरिशस रूट से पैसा घूमाने का आरोप लगाया गया था और अब फिर मॉरिशस का नाम सामने आ रहा है. हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले भी काले धन को सफेद करने के लिए यह ‘बदनाम गली’ कुख्‍यात रही है और शेयर बाज़ार में मॉरीशस रुट को लेकर समय-समय पर हल्ला मचता रहता है. घोटाले के आरोप लगते रहते हैं. तो आइये आज जानते हैं कि आखिर ‘मॉरिशस रूट’ क्‍या है, क्‍यों इसका इस्‍तेमाल भारत में पैसा लगाने को होता है?

मॉरिशस रूट काले धन को भारत से बाहर निकालकर वापस भारतीय बाजार में लगाने का जरिया बना हुआ है. काले धन को सफेद करने के लिए बहुत से भारतीय लोग और कंपनियां इसी रूट का इस्तेमाल करते हैं, ऐसा अक्‍सर कहा जाता है. अमेरिका, सिंगापुर और लक्ज़मबर्ग के बाद फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (FPI) के मामले में मॉरिशस अभी भी भारत का चौथा सबसे बड़ा जरिया है. माना जाता है कि कुछ भारतीय कंपनियां ही मॉरिशस और भारत के बीच हुए ‘दोहरे कर बचाव’ करार की आड़ में मॉरिशस में फर्जी कंपनी बनाती है और फिर भारत से ही मॉरिशस भेजे गए काले धन को भारतीय बाजार में लगा देती हैं.

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मार्च 2024 के अंत तक मॉरिशस से भारत में आया FPI निवेश 4.19 लाख करोड़ रुपये था. ये भारत में कुल FPI निवेश (69.54 लाख करोड़ रुपये) का 6 फीसदी है. वहीं, मार्च 2023 के अंत तक ये आंकड़ा 3.25 लाख करोड़ रुपये था. साल 2001 से 2011 के बीच भारत आने वाले पूरे विदेशी निवेश का 39.6% फीसदी मॉरिशस से आया था.

टैक्‍स हेवन देश है मॉरिशस
मॉरिशस एक टैक्स हेवन है, यानी यहां कम टैक्स लगता है. भारत और मॉरिशस के बीच एक खास समझौता है. दोनों ने डबल टैक्‍सेशन से कंपनियों को छूट दी है. यानी कंपनियां भारत या मॉरिशस में से एक ही जगह टैक्‍स चुकाने के लिए जिम्‍मेदार है. चूंकि मॉरिशस में नाममात्र टैक्‍स लगता है, तो कंपनियां मॉरिशस को ही टैक्‍स देने को चुनती हैं.

कैसे काम करता है मॉरिशस रूट?
मॉरिशस काला धन भेजने के कई तरीके हैं जैसे कि फर्जी निर्यात, ओवर-इनवॉयसिंग या हवाला. भारत के ही लोग मॉरीशस में Shell Company खोलते हैं. कंपनी काग़ज़ पर होती है. यह कंपनी दो काम करती है. मॉरिशस में बनी कंपनी भारत में किसी दूसरी कंपनी को लोन देती है. भारतीय कंपनी इस ऋण पर ब्याज देती है, जो काले धन को वैध दिखाने का एक तरीका है. भारत-मॉरिशस डबल टैक्स एविडेंस (DTAA) समझौते के तहत मॉरिशस में दी गई ब्याज आय पर भारत में टैक्स नहीं लगता है. इस तरह यह पूरी तरह से वैध हो जाता है. बहुत से लोग मॉरिशस में कुछ विदेशियों के साथ मिलकर कंपनी बनाते हैं. यह कंपनी भारत के ही पैसे भारत के शेयर बाज़ार में लगाती है. बाज़ार को लगता है कि विदेशी निवेश हो रहा है. जबकि हकीकत में होता यह भारत से पहले मॉरिशस भेजा गया पैसा ही होता है.

हालांकि अब भारत-मॉरिशस करार में बदलाव किए गए हैं ताकि इस गड़बड़झाले को रोका जाए. अब प्रावधान किया गया है कि अगर किसी कंपनी ने सिर्फ कम टैक्स देने के लिए मॉरिशस का रास्ता चुना है तो उसे करार का फायदा नहीं मिलेगा. सरकार अब इस बात की जांच कर सकेगी कि कोई कंपनी करार का गलत फायदा उठा रही है. समझौते में अब एक नया नियम ‘प्रिंसिपल पर्पज टेस्ट’ (PPT) शामिल किया गया है. इसका सीधा मतलब है कि अगर ये साबित हो जाता है कि कोई लेन-देन या करार सिर्फ इसीलिए किया गया था ताकि टैक्स न देना पड़े, तो उसे इस करार के दायरे में नहीं माना जाएगा.

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