प्लेस्कूल की फीस साढ़े 4 लाख रुपये, अरबपति का दावा- रियल एस्टेट में भ्रष्टाचार का पैसा है जिम्मेदार

नई दिल्ली. शिक्षा की बढ़ती लागत आज के समय में एक बड़ी चिंता बन चुकी है. ज़ोहो के सीईओ श्रीधर वेम्बू का कहना है कि स्कूलों की भारी फीस के पीछे सबसे बड़ा कारण महंगा रियल एस्टेट है, खासकर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में. यह केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि आवास, खुदरा व्यापार और स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर डालता है. शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की बढ़ती लागत के पीछे राजनीतिक भ्रष्टाचार से कमाए गए धन को रियल एस्टेट में निवेश करने का बड़ा हाथ है. वेम्बू का मानना है कि इन समस्याओं का हल कम खर्चे वाली शिक्षा में है, जिसे वे ग्रामीण क्षेत्रों में ज़ोहो द्वारा संचालित स्कूलों के माध्यम से सुलभ बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

ज़ोहो के सीईओ श्रीधर वेम्बू अरबपति हैं और वे गांव से काफी लगाव रखते हैं. मनीकंट्रोल की एक खबर के मुताबिक, वेम्बू ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “शिक्षा तेजी से महंगी होती जा रही है. इसका एक बड़ा हिस्सा शहरी रियल एस्टेट (और छोटे शहरों के आसपास के रियल एस्टेट) के अत्यधिक महंगे होने के कारण है; यह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और आवास पर भी असर डालता है.”

ज़ोहो के सीईओ श्रीधर वेम्बू.

वेम्बू बेंगलुरु के एक उद्यम पूंजीपति अविरल भटनागर की पोस्ट पर प्रतिक्रिया दे रहे थे. उन्होंने शेयर किया था कि हैदराबाद में किंडरगार्टन (छोटे बच्चों के प्ले स्कूल) की फीस सालाना 3.7 लाख रुपये तक पहुंच गई है.

भ्रष्टाचार का पैसा रियल एस्टेट में
ज़ोहो प्रमुख ने कहा, “काफी सारा भ्रष्टाचार से कमाया पैसा रियल एस्टेट में लगाया जा रहा है और इसने कीमतों को सामान्य बाजार से कहीं अधित बढ़ा दिया है. एक तरह से हम सभी महंगे आवास, स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में राजनीतिक भ्रष्टाचार की कीमत चुका रहे हैं.”



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