नई दिल्ली. आमतौर पर म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) स्कीम के निवेशकों के मन में सिर्फ यह होता है कि इसका पिछला रिटर्न कैसा रहा है और आगे रिटर्न की कितनी संभावना है. निवेशकों को लगता होगा कि अगर किसी फंड का रिटर्न 10 फीसदी या 20 फीसदी है तो उनको भी निवेश करने पर उतना ही प्रॉफिट होगा. लेकिन कई निवेशक एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) पर ध्यान नहीं देते हैं. अगर फंड का एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा है तो निवेशकों को मिलने वाली असली रिटर्न पर असर पड़ता है.
मान लिया आपने किसी फंड में 10 हजार रुपये निवेश किया है. इसका एक्सपेंस रेश्यो 1.60 फीसदी है. अगर आपको एक साल में 15 फीसदी रिटर्न मिलता है तो यह 10,000 रुपये होगा. लेकिन आपके रिटर्न में से 1.60 फीसदी एक्सपेंस रेश्यो भी कट जाएगा. इस तरह असल रिटर्न 13.4 फीसदी होगा. वहीं अगर एक्सपेंस रेश्यो 1 फीसदी होता तो आपका असल रिटर्न 14 फीसदी होता.
क्या होता है एक्सपेंस रेश्यो
म्यूचुअल फंड्स को एसेट मैनेजमेंट कंपनीज (AMC) मैनेज करती हैं. ये एएमसी डिस्ट्रीब्यूशन, मार्केटिंग, ट्रांसफर कस्टोडियन, लीगल और ऑडिटिंग जैसे खर्च उठाती है. ये खर्च म्यूच्युअल फंड की यूनिट खरीदने वाले निवेशकों से वसूले जाते हैं. इन खर्चों को एएमसी एक्सपेंस रेश्यो के रूप में वसूलती है. एक्सपेंस रेश्यो यह तय करता है कि फंड में निवेश करना सस्ता पड़ेगा या महंगा. किसी फंड का एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा होता है तो किसी का कम होता है.
कम एक्सपेंस रेश्यो से ज्यादा रिटर्न की गारंटी नहीं
म्यूचुअल फंड निवेशकों को ध्यान रखना चाहिए कि कम या ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो से रिटर्न की गारंटी नहीं मिलती है. कई बार ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो वाले म्यूचुअल फंड कम एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड की तुलना में ज्यादा मुनाफा देते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 22, 2024, 06:30 IST