बैंकों से आमजन का मोहभंग, असर बड़ा संकटकारी- रेंग रही इकॉनमी, रोजगार का भी टोटा

नई दिल्ली. भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन इसमें रोजगार पैदा करना एक बड़ी चुनौती भी है. सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक खर्च से ग्रोथ रेट को बल मिला है, लेकिन प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में कमी और बैंक डिपॉजिट में धीमी ग्रोथ से आर्थिक संतुलन बिगड़ रहा है. बैंक कर्ज तभी दे पाएंगे, जब उनके पास कर्ज बांटने जितना पैसा रखा हो. लेकिन डिपॉजिट की कमी और लोन बांटने के अनियंत्रित नियमों ने आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है. इन सब के बीच, घरों की बचत का निवेश शेयर मार्केट और पूंजी बाजार में बढ़ रहा है. समझने की जरूरत है कि ये पूरा घटनाक्रम भारत के आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है.

इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस में एक विस्तृत रिपोर्ट छापी गई है. इस रिपोर्ट में आंकड़ों के आधार पर इस घटनाक्रम को लयबद्ध किया गया है. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, युवाओं में बेरोजगारी दर 17 प्रतिशत तक पहुंच गई है. वहीं, निजी निवेश में भी कमी देखी गई है. इस निवेश को निजी स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) से मापा जाता है. वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में यह निवेश घटकर 6.46 प्रतिशत पर आ गया, जो पिछली तिमाही में 9.7 प्रतिशत था.

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में बताया गया कि वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2023 के बीच, कुल GFCF में नॉन-फाइनेंशियल निजी कंपनियों की हिस्सेदारी केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ी. इस सर्वेक्षण ने स्पष्ट किया कि अब निजी क्षेत्र को आगे बढ़कर अर्थव्यवस्था की बागडोर संभालने की जरूरत है.

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निजी क्षेत्र में निवेश की कमी का एक मुख्य कारण बैंकों की निजी क्षेत्र को कर्ज देकर जोखिम लेने की घटती क्षमता है. यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, क्योंकि एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष में कर्ज की सालाना वृद्धि दर घटकर 14 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 16 प्रतिशत थी.

भारी है डिपॉजिट संकट
भारत जैसी अर्थव्यवस्था में ग्रोथ को बनाए रखने में बैंक क्रेडिट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बैंक डिपॉजिट भी उसी दर से बढ़ें. फिलहाल बैंकों के सामने डिपॉजिट की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिससे उनका कर्ज देने की क्षमता प्रभावित हो रही है. इस डिपॉजिट-क्रेडिट के अंतर ने बीते दो दशकों का सबसे खराब डिपॉजिट संकट पैदा कर दिया है. एचडीएफसी बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो सालों में डिपॉजिट वृद्धि औसतन 11.1 प्रतिशत रही, जबकि कर्ज वृद्धि 16.8 प्रतिशत रही. इससे पहले, 2018-2019, 2011-2013 और 2004-2007 में भी ऐसी ही स्थिति देखी गई, जब सेंट्रल बैंक (RBI) द्वारा ब्याज दरें बढ़ाई गई थीं.

बैंकों में जमा नहीं तो कहां?
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी जुलाई में डिपॉजिट की धीमी वृद्धि पर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि बैंकों पर पारंपरिक रूप से भरोसा करने वाले परिवार और उपभोक्ता अब अपनी बचत पूंजी बाजार और अन्य वित्तीय माध्यमों में लगा रहे हैं. एचडीएफसी बैंक की क्रॉस-कंट्री रिपोर्ट के अनुसार, भारत का वर्तमान प्रति व्यक्ति आय का स्तर अन्य एशियाई देशों जैसे थाईलैंड, मलेशिया और चीन की तुलना में क्रेडिट-जीडीपी अनुपात में कम है.

बैंकों की डिपॉजिट ग्रोथ में गिरावट का एक और कारण यह है कि घरेलू बचत पूंजी बाजारों की ओर बढ़ रही है. कोविड-19 महामारी के बाद से भारतीय पूंजी बाजारों ने बड़ी वृद्धि देखी है. हालांकि, यह भी स्पष्ट किया गया है कि सिर्फ घरेलू बचत का पूंजी बाजार की ओर बढ़ना बैंकों में डिपॉजिट में कमी का कारण ही नहीं है, बल्कि यह डिपॉजिट ओवरऑल संरचना को प्रभावित करता है.

एचडीएफसी बैंक की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि चुनावों के नजदीक सरकारी खर्चों में कमी से डिपॉजिट संकट और गहरा हो गया है. सरकार का खर्च कम होने के कारण आरबीआई में सरकारी नकदी का संतुलन बढ़ गया है, जो जनवरी 2024 में 4.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था और मई 2024 में यह 4 लाख करोड़ करोड़ से ऊपर था.

एसएंडपी ग्लोबल ने कहा कि निजी निवेश के साइकल को गति मिलने के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं. सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और हाउसिंग सेक्टर के पुनरुद्धार ने स्टील और सीमेंट जैसे संबंधित क्षेत्रों में निजी निवेश को आकर्षित किया है. हालांकि, अभी व्यापक स्तर पर रिकवरी नहीं हो पाई है.

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