बिजनेस को लेकर अलग थे ‘बापू’ के विचार, टाटा-बिड़ला को सिखाकर गए कैसे करते हैं व्यापार

नई दिल्ली. आज महात्मा गांधी का 155वां जन्मदिवस है. देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला मोहनदास करमचंद्र गांधी ने कई विषयों पर अपनी राय रखी. बिजनेस और कॉर्पोरेशंस के बारे में भी उन्होंने समय-समय पर बात की. आज हम महात्मा गांधी के उसी पहलू के बारे में बात करेंगे. आज हम जानेंगे कि गांधी के बिजनेस को लेकर क्या विचार थे और वह समाज में इनका क्या योगदान मानते थे.

यह लेख द कॉन्वर्सेशन में 2019 में जॉफ्री जोन्स और सुदेव सेठ द्वारा लिखे आर्टिकल पर आधारित है. उस आर्टिकल में गांधीजी के कई वर्षों के लेखों में बिजनेस के संदर्भ से चुनिंदा चीजों को निकालकर लोगों के सामने रखा गया था.

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क्या थी व्यवसायों के बारे में उनकी राय?
महात्मा गांधी का मानना था कि व्यवसायों की समाज में एक खास और अहम भूमिका होनी चाहिए. उनका दृष्टिकोण केवल मुनाफे तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी को भी उतनी ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए. गांधी का यह विचार था कि कंपनियों को ‘ट्रस्टीशिप’ के सिद्धांत पर काम करना चाहिए, यानी व्यवसाय का उद्देश्य न केवल मालिक के लिए संपत्ति बनाना हो, बल्कि समाज के लिए भी मूल्य उत्पन्न करना हो.

बिजनेस घरानों पर प्रभाव
गांधी ने कहा था कि किसी भी व्यापार का मुख्य उद्देश्य समाज के लिए योगदान देना होना चाहिए. वे मानते थे कि व्यापारियों और उद्योगपतियों को अपना व्यापार एक ट्रस्टी की तरह चलाना चाहिए, जहां वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं. उनके विचारों का प्रभाव कई भारतीय उद्योगपतियों पर पड़ा, जैसे कि टाटा, बिड़ला और बजाज परिवार. इन परिवारों ने अपने व्यापार को केवल मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि समाज के लाभ के लिए संचालित किया.

संपत्ति पर समाज का भी अधिकार
गांधी का यह मानना था कि एक सच्चे व्यवसायी को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और ऐसा काम करना चाहिए, जो केवल एक पीढ़ी तक सीमित न रहे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद हो. उनका कहना था कि व्यापार में नैतिकता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है. उनका यह भी मानना था कि संपत्ति केवल उस व्यक्ति की नहीं होती जिसने उसे कमाया है, बल्कि समाज का भी उस पर अधिकार होता है.

व्यापार नहीं सामाजिक सेवा
गांधी का यह दृष्टिकोण व्यवसाय को एक सामाजिक सेवा के रूप में देखने पर आधारित था. उन्होंने निजी संपत्ति और उद्यम की अहमियत को समझा, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि व्यापार से उत्पन्न संपत्ति का लाभ केवल व्यवसायी तक सीमित न रहकर समाज के हर हिस्से तक पहुंचना चाहिए. उनके विचारों का आज भी भारतीय उद्योगपतियों पर गहरा प्रभाव है, जो अपने व्यापार को केवल मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि समाज के विकास और बेहतरी के लिए चला रहे हैं.

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