NSD से की पढ़ाई, मायानगरी में दिखाया एक्टिंग का दम, करोड़ों कमाकर भी कुटिया में रहता है 60 साल का हीरो

नई दिल्ली. बनारसी होना एक शब्द नहीं, संस्कार है. यही संस्कार कूट-कूट कर संजय मिश्रा में भरा है. साधारण कद-काठी और चेहरा, कैमरे के सामने असाधारण अदाकारी संजय मिश्रा को अपने दौर के कलाकारों से बेहद अलग बनाती है. बनारस में रचे-बसे संजय मिश्रा ने करियर में बुलंदियों को छुआ तो छोटे पर्दे पर भी काम करने में संकोच महसूस नहीं किया. 6 अक्टूबर 1963 को बिहार के दरभंगा में पैदा हुए संजय मिश्रा पिता के साथ कई शहर घूमे. नौ साल की उम्र में बनारस शिफ्ट हो गए.

इस शहर ने संजय मिश्रा के ना सिर्फ करियर को गढ़ा, एक इंसान के उन गुणों से भी मिलवाया, जिसे आज भी संजय मिश्रा ‘सपनों की नगरी’ मुंबई में ढूंढते मिल जाते हैं. जब उकता जाते हैं तो ‘अजीब फैसला’ भी लेते हैं. लेकिन, इसकी बात बाद में करते हैं. संजय मिश्रा को फिल्मों के जरिए समझना नामुमकिन है. एक किरदार में ढल जाना अदाकारी है, इसमें उन्हें महारत हासिल है. लेकिन, उनकी बातें, जीवन जीने का नजरिया और खुद को खोजने की यात्रा किसी फिलॉस्फर से कम नहीं है. सिल्वर स्क्रीन पर संजय मिश्रा की आंखें कुछ खोजती हैं. शायद, कहती हैं कि आपको उसका पता चले तो हौले से उनके कान में कह देना.

संजय मिश्रा ने एक लंबा दौर देखा. 1991 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग का कोर्स किया और ‘सपनों की नगरी’ मुंबई में एक बड़ा नाम बनने का सफर शुरू किया. छोटा पर्दा करियर की शुरुआत में मददगार बना. फिर, ‘दिल से’, ‘बंटी और बबली’, ‘अपना सपना मनी मनी’, ‘आंखों देखी’, ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’, ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘मेरठिया गैंगस्टर्स’ जैसी फिल्मों में दिखे.

संजय मिश्रा अपनी कुटिया के बाहर पोज देते हुए.

संजय मिश्रा को ‘आंखों देखी’ के लिए खूब वाहवाही मिली. ‘फिल्म फेयर बेस्ट एक्टर क्रिटिक्स’ का अवार्ड भी मिला. लेकिन, खुद को खोजने की यात्रा जारी रही. पिता के निधन से टूट चुके संजय मिश्रा ने एक्टिंग से मुंह मोड़ लिया, ढाबे पर काम करने लग गए थे. किस्मत की करामात कहिए या बॉलीवुड में उनकी फाइन-एक्टिंग की दीवानगी, एक बार फिर वापसी की और रुपहले पर्दे के ध्रुव तारा बन गए.

Sanjay Mishra farm house

संजय मिश्रा का लोनावला वाला घर.

मुंबई से दूर जाकर बसे हैं संजय मिश्रा

संजय मिश्रा मुंबई जैसे भागमभाग वाले शहर में खुद को खोज रहे हैं. खुद को समझने की कोशिश कर रहे हैं. एक इंसान से दूसरे इंसान के रिश्ते को समझना चाहते हैं. मानवीय रिश्तों और उसमें लिपटी जरूरतों, चुनौतियों, उलझनों को सुलझाने में जुटे हैं. कहीं ना कहीं संजय मिश्रा इस सफर से उकता गए और जिस मुंबई में बड़ा नाम बनने के लिए कड़ी मेहनत की, उसी ‘सपनों की नगरी’ के मोह से खुद को मुक्त कर लिया.

पौने 2 एकड़ में जमीन में घर और खेती-बाड़ी

कुछ दिनों पहले खबर आई कि संजय मिश्रा ने मुंबई से करीब 140 किलोमीटर दूर लोनावला में नया ठिकाना बनाया है. कुटिया जैसा छोटा घर है तो साग-सब्जी उगाने की व्यवस्था भी. शूटिंग नहीं कर रहे होते हैं, तो, वह अपनी इसी दुनिया से लिपट जाते हैं. कुटिया की तरह बने इस घर में सिर्फ लड़कियों का यूज हुआ है. पौने 2 एकड़ जमीन पर बनी इस कुटिया में सिर्फ एक बेडरूम है. बेडरूम में कहीं भी ईंट या सीमेंट का यूज नहीं किया गया है. दरवाजे से लेकर, दीवारों और फर्श पर भी लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. यह दुनिया खुद को कहीं ना कहीं बनारस से जोड़ने की कोशिश है तो अपने अंदर के ठेठ देहाती इंसान से मुलाकात करने की शिद्दत भी.

Tags: Happy birthday, Sanjay Mishra

Source link