नई दिल्ली. आजकल इलेक्ट्रिक गाड़ियां पर्यावरण के प्रति जागरूक हस्तियों का नया स्टेटस सिंबल बन चुकी हैं. बड़े-बड़े सितारों से लेकर आम लोगों तक इसे अपने गाड़ियों के काफिले में शामिल कर रहे हैं. हालांकि, हालिया शोध बताता है कि इलेक्ट्रिक गाड़ी चलाने से पर्यावरण पर उतना सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता जितना इन हस्तियों को लगता है.
फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ टर्कू के वैज्ञानिकों के शोध में खुलासा हुआ है कि औसतन, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) मालिकों का कार्बन फुटप्रिंट पेट्रोल या डीजल कार मालिकों से ज्यादा होता है. शोध के अनुसार, इलेक्ट्रिक कारें भले ही उत्सर्जन कम करती हों, लेकिन उनके मालिकों की भव्य जीवनशैली पर्यावरण पर अधिक नकारात्मक प्रभाव डालती है.
शोध में पाया गया कि पेट्रोल वाली गाड़ी चलाने वालों की तुलना में एक इलेक्ट्रिक गाड़ी मालिक सालाना औसतन आधा टन ज्यादा CO2 पैदा करता है. वहीं, स्पोर्टी मॉडल्स के मालिक करीब 2 टन अधिक प्रदूषण फैलाते हैं. शोधकर्ताओं ने लगभग 4,000 फिनिश लोगों के जीवनशैली, कार स्वामित्व और पर्यावरण संबंधी आदतों का अध्ययन किया, और यह पाया कि EV मालिक सालाना 8.66 टन ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न करते हैं. जबकि पेट्रोल या डीजल कार चलाने वालों का उत्सर्जन 8.05 टन है.
ईवी मालिकों में भी फर्क
हालांकि, EV मालिकों के बीच भी अंतर देखा गया. जो लोग अपनी गाड़ी की विश्वसनीयता और किफायती उपयोगिता पर ध्यान देते हैं, वे औसतन 7.59 टन CO2 उत्सर्जित करते हैं. वहीं, जिन लोगों को कार की परफॉर्मेंस की ज्यादा चिंता होती है, वे सालाना 10.25 टन प्रदूषण फैलाते हैं.
आदत से मजबूर
इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि इलेक्ट्रिक गाड़ी चलाने से उत्सर्जन में 19% की कमी हो सकती है, लेकिन EV मालिकों की जीवनशैली के कारण बचाए गए उत्सर्जन का असर कम हो जाता है. शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि EV मालिक आम तौर पर उच्च आय वाले होते हैं, जिससे उनका घर बड़ा होता है और वे अधिक यात्रा और उपभोग करते हैं, जिससे उनका कुल कार्बन फुटप्रिंट बढ़ता है.
Tags: Business news, Electric vehicle
FIRST PUBLISHED : October 6, 2024, 21:43 IST