“रतन टाटा: ए लाइफ” में लेखक थॉमस मैथ्यू ने एक इंटरव्यू में कई खुलासे किए हैं.बताया- टाटा ग्रुप से साइरस मिस्त्री को हटाए जाने पर रतन टाटा ने कैसा महसूस किया. अपने उत्तराधिकारी के तौर पर रतन टाटा ने सौतेले भाई नोएल टाटा को क्यों नहीं चुना?
Book on Ratan Tata : रतन टाटा का जीवन वैसे तो एक खुली किताब की तरह था. मीडिया ने समय-समय पर उनके विचारों और कार्यों के बारे में बहुत कुछ छापा है. फिर भी माना जाता है कि रतन टाटा जैसे विशाल व्यक्तित्व के हर पहलू से पर्दा अभी उठा नहीं है. धीरे-धीरे उनके बारे में बातें और किस्से सामने आ रहे हैं. इसी बीच, रतन टाटा की जीवनी “रतन टाटा: ए लाइफ” में लेखक थॉमस मैथ्यू ने कई ऐसे खुलासे किए हैं, जो अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं थे. इस पुस्तक में टाटा समूह के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों, चुनौतियों और उन जटिल संबंधों का ब्यौरा दिया गया है, जो टाटा परिवार और इसके व्यवसायिक साझेदारों के बीच रहे हैं. यह किताब टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा और उनके उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री के बीच के रिश्ते और साथ ही उनके सौतेले भाई नोएल टाटा के बारे में रतन टाटा की सोच को समझाने का प्रयास करती है. मैथ्यू ने पीटीआई वीडियो को दिए साक्षात्कार में कई तमाम बातें बताई हैं.
आम तौर पर लोग टाटा ग्रुप से साइरस मिस्त्री को हटाए जाने के पीछे की वजह जानना चाहते हैं. इस बारे में पुस्तक में काफी कुछ होने का दावा है. मैथ्यू ने इंटरव्यू में कहा कि रतन टाटा के लिए साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाना कोई आसान फैसला नहीं था. मैथ्यू के अनुसार, टाटा के मन में यह विश्वास था कि मिस्त्री टाटा समूह के लिए सही व्यक्ति हैं, लेकिन समय के साथ चीजें बदल गईं. जब टाटा समूह के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को यह चिंता सताने लगी कि मिस्त्री की नीतियों से टाटा समूह के मूल संरचना में बदलाव हो सकता है, तो रतन टाटा की चुप्पी भी बहुत कुछ कहती थी. उन्होंने ‘नो कमेंट्स’ कहकर अपने विचारों को प्रकट न करने का तरीका अपनाया, लेकिन यह चुप्पी कहीं न कहीं उनकी आंतरिक चिंताओं का भी संकेत थी.
साल 2016 में, रतन टाटा ने मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का निर्णय लिया, जो उनके अनुसार केवल व्यापारिक प्रदर्शन से नहीं, बल्कि नैतिकता से भी जुड़ा था. मिस्त्री के नेतृत्व में टाटा समूह के शेयरधारकों के साथ कंपनी के संबंध और लाभांश में कमी रतन टाटा के लिए चिंता का विषय बने. उनका मानना था कि इससे टाटा ट्रस्ट्स के परोपकारी कार्यों के लिए मिलने वाले फंड पर असर पड़ रहा था, जो उनके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे.
मिस्त्री और शापूरजी पालोनजी ग्रुप के रिश्ते
रतन टाटा के लिए यह भी एक महत्वपूर्ण मसला था कि साइरस मिस्त्री ने टाटा समूह का नेतृत्व संभालने के बाद शापूरजी पालोनजी समूह (एसपी ग्रुप) से खुद को पूरी तरह से अलग नहीं किया था. एसपी ग्रुप टाटा संस में 18% हिस्सेदारी रखता था और यह रतन टाटा को असहज करता था. टाटा समूह के कुछ दिग्गज मानते थे कि जिस तरह एसपी ग्रुप ने टाटा संस के शेयर धीरे-धीरे खरीदे, उसमें पारिवारिक कमजोरियों का फायदा उठाया गया. मैथ्यू के अनुसार, जेआरडी टाटा भी इस बात से नाखुश थे और इसे एक अप्रिय संकेत मानते थे.
टाटा समूह में आंतरिक बदलाव और टकराव
मिस्त्री के चेयरमैन बनने के बाद, टाटा संस के निदेशक मंडल में कुछ बदलाव किए गए. पहले टाटा समूह के निदेशक एक ही समय में टाटा ट्रस्ट, टाटा संस और अन्य बड़ी कंपनियों के बोर्ड में शामिल होते थे, जिससे एक मजबूत कड़ी बनी रहती थी. लेकिन मिस्त्री के समय में इस परंपरा में कमी आई, जिससे टाटा समूह के दिग्गजों के बीच असंतोष बढ़ा. उन्हें लगा कि मिस्त्री की कार्यशैली से टाटा समूह के पारंपरिक ढांचे में दरारें आ रही थीं, जो अंततः समूह की स्थिरता और एकजुटता के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती थी.
मिस्त्री की विदाई का नाटकीय मोड़
रतन टाटा के लिए मिस्त्री को हटाने का निर्णय आसान नहीं था. मैथ्यू बताते हैं कि टाटा खुद एक पत्र लेकर मिस्त्री के पास गए थे और उन्हें स्वेच्छा से पद छोड़ने का सुझाव दिया था. टाटा नहीं चाहते थे कि मिस्त्री के साथ कोई अप्रिय स्थिति बने, लेकिन मिस्त्री के इस सुझाव को ठुकराने के बाद, उन्हें अंततः हटाने का निर्णय लेना पड़ा. रतन टाटा के अनुसार, यह फैसला उनके जीवन का एक दर्दनाक क्षण था, लेकिन उन्होंने इसे समूह की बेहतरी के लिए आवश्यक समझा.
नोएल टाटा पर रतन टाटा की सोच
रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा के प्रति उनके भावनात्मक संबंध और स्नेह थे, लेकिन जब उत्तराधिकारी के चयन की बात आई, तो रतन टाटा ने उन्हें इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं समझा. मैथ्यू के अनुसार, रतन टाटा को नोएल की काबिलियत पर विश्वास था, लेकिन उनका मानना था कि नोएल के पास टाटा समूह जैसे बड़े समूह को चलाने का अनुभव नहीं था. टाटा परिवार की यह सोच दर्शाती है कि व्यवसायिक फैसलों में केवल पारिवारिक संबंधों को प्राथमिकता नहीं दी जाती, बल्कि समूह की स्थिरता और भविष्य की बेहतरी को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 7, 2024, 11:37 IST