नई दिल्ली. अमेरिका में यूनाइटेड हेल्थकेयर कंपनी के सीईओ ब्रायन थॉम्प्सन की हत्या ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी हैं. किसी भी हत्या की आमतौर पर भर्त्सना की जाती है लेकिन इस मामले में एक बड़ा तबका ऐसे है जो हत्या के आरोपी के समर्थन में खड़ा है. थॉम्प्सन की हत्या का आरोप 26 वर्षीय जोसेफ केनी पर है. अभी इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है कि केनी ने सीईओ की हत्या क्यों की लेकिन लोगों के बीच यह चर्चा जरूर है कि जो हुआ अच्छा हुआ.
इस बात से एक चीज तो साफ है कि लोग इंश्योरेंस कंपनियों के प्रति गुस्से में हैं. घटनास्थल पर जो गोलियां मिली हैं उन पर डिले, डिनाय और पॉसिबली डीपोज लिखा हुआ था. माना जा रहा है कि इंश्योरेंस कंपनियों में तीन डी प्रचलित हैं और इन लिखे शब्दों का संबंध उन्हीं से है. इंश्योरेंस कंपनियों में प्रचलित तीन डी हैं- डिले, डिनाय, डिफेंड यानी देर करें, मना करें और अपने फैसले को सही साबित करें. इससे लगता है कि लोग इंश्योरेंस कंपनियों से उम्मीद हार चुके हैं और वह मानते हैं कि ये कंपनियां इंश्योरेंस क्लेम सेटल करने में देरी करती हैं, उन्हें मना करती हैं और फिर अपने उस फैसले का बचाव करती हैं.
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डरावनी स्थिति
एक हत्या और कथित हत्यारे का जश्न मनाना भयावह स्थिति है. लेकिन इससे सवाल भी उठता है कि समाज यहां तक पहुंचा कैसे. क्यों एक हत्यारे के समर्थन में लोग सोशल मीडिया पोस्ट डाल रहे हैं. इसका मतलब है कि लोग कहीं न कहीं मौजूदा प्रणाली से त्रस्त हो चुके हैं. भारत में भी कुछ कंपनियां ऐसी हैं जो क्लेम सेटलमेंट के नाम पर लोगों के सामने फर्जी तस्वीर पेश कर रही हैं. उदाहरण के लिए स्टार हेल्थ या नीवा बूपा जनरल इंश्योरेंस कंपनी.
इंश्योरेंस अमाउंट देने में आनाकानी
स्टार हेल्थ सेटलमेंट रेश्यो 75.10 फीसदी है. यह अन्य इंश्योरेंस कंपनियों के मुकाबले काफी औसत है. लेकिन दिक्कत सिर्फ क्लेम सेटलमेटं रेश्यो नहीं है. दरअसल, इंडियन ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, स्टार हेल्थ द्वारा 2023 में सेटल किए गए क्लेम्स में जो रकम मांगी गई थी कंपनी ने उसका केवल 54.61 फीसदी ही चुकाया. यानी 100 रुपये के क्लेम पर कंपनी ने केवल 54 रुपये ही दिए. नीवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो जहां 88 फीसदी से ज्यादा था तो अमाउंट पेमेंट केवल 67 फीसदी ही था. मणिपाल सिग्ना की स्थिति तो इससे भी बुरी रही. कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो नीवा बूपा के आसपास ही था लेकिन भुगतान मात्र 56 फीसदी अमाउंट किया गया.
सबक
इससे पता चलता है कि कंपनियां इंश्योरेंस बेचते समय बहुत सुनहरी तस्वीर दिखाती हैं लेकिन जब उनकी जरूरत पड़ती है तो ग्राहक को निराशा के अलावा कुछ नहीं मिलता. ऐसे में इंश्योरेंस कंपनियों के प्रति लोगों की सहानुभूति कम होना कोई हैरानी वाली बात नहीं है. लेकिन इन सब बातों के साथ एक चीज यह भी ध्यान रखनी होगी कि एक सभ्य समाज में हत्या का कोई स्थान नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : December 13, 2024, 16:36 IST