IAS पूजा खेडकर की प्याज की पर्तों की तरह उधरती कारगुजारियों पर याद आ जाती है ये फिल्म

आईएएस पूजा खेडकर की कहानी देख कर श्रीकांत नाम की एक फिल्म की कहानी याद आ जाती है. तकरीबन दो महीने पहले आई इस फिल्म की कहानी श्रीकांत बोला पर है. आम बातचीत में देखने में लाचार आदमी को जो भी कहा जाता है, उसे विकलांगता के कारण सरकारी व्यवस्था में आरक्षण जैसी तमाम दूसरी सुविधाएं दी जाती हैं. लेकिन श्रीकांत अलग से कोई सुविधा नहीं चाहता. वह बराबरी का मौका चाहता है. उसे विशेष श्रेणी में मिलने वाला सम्मान भी तिरस्कार लगता है. वह ऐसा सम्मान लेने से मना कर देता है. जबकि पूजा के बारे में बताया जा रहा है उसने विकलांग का दस्तावेज गलत तरीके से बना कर नौकरी हांसिल की. अब एक के बाद एक और बातें पूजा के बारे में सामने आती जा रही हैं.

हकीकत और फिल्म की घटनाओं में दिख रहा विरोधाभास बिडंबना की तरह सामने आता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर कुदरत ने शारिरिक तौर पर किसी को कमजोर या फिर किसी भी सामान्य व्यक्ति से शारीरिक रूप से कमतर बना दिया है तो उसे सरकारी नौकरियों में मदद मिलनी ही चाहिए. समानता के सिद्धांत की ये मौलिक दरकार है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति गलत कागजों के आधार पर इस तरह का फायदा उठाता है या कोशिश करता है तो निश्चत तौर ये बहुत खराब है.

ये भी पढ़ें : पुस्तक समीक्षा: सहज-सरल हिंदी में पढ़ सकते हैं कालिदास की अमर रचना ‘मेघदूत’

बहरहाल, फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है कि श्रीकांत के जन्म से अंधे होने के कारण पड़ोसी उसे जन्म के समय ही मार देने की सलाह तक दे डालते हैं. आंखें न होने के बाद भी श्रीकांत बड़े सपने देखता है. आंध्र प्रदेश के इस युवक की प्रेरणा बनते हैं राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम. उसे एक बार डॉक्टर कलाम से मिलने का मौका मिलता है और वे भी इस युवक के हौसलों से प्रभावित होंते हैं. फिर अमेरिका की एमआईटी में पढ़ाई कर वो देश लौटता है. यहां उसने 500 करोड़ रुपये का उद्योग स्थापित किया और रोजगार देने के साथ दिव्यांगों की मदद भी करता है. श्रीकांत को पूरी सफलता उसकी लगन के कारण मिली है. उसने अपनी कमजोरी को चुनौती मान कर उससे सफलता की रोशनी देखी.

एक्टर राजकुमार राव ने फिल्म में लाजवाब अभिनय किया है. उन्होंने देख पाने में अक्षम किसी व्यक्ति को पर्दे पर इस तरह उतारा है कि ये लगता ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं. दृष्टिहीन व्यक्ति जिस तरह से अपनी आखों को बार-बार कुछ अलग तरह घुमाते हैं राजकुमार राव ने उसे कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. फिल्म के निर्देशक तुषार हीरानंदानी है. उन्हे पूरी फिल्म को बांधे रखने में खूब सफलता मिली है. फिल्म में राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम का रोल निभाया है जमील खान ने. गुल्लक से मशहूर हुए जमील खान ने डॉक्टर कलाम के हाव भाव की ऐसी कॉपी की है कि देखते बनता है. ड्रेस डिजाइनर ने भी लाजवाब काम किया है क्योंकि डॉक्टर कलाम का वेश बिल्कुल असली लगता है. चूकि बहुत सारे लोगों ने डॉक्टर कलाम को टीवी पर देखा सुना है, लिहाजा उनके ड्रेस, डिजाइन की कॉपी करना और अधिक चुनौती का काम था. जिसमें डिजाइनर को सफलता मिली है. एक्ट्रेस ज्योतिका और शरद केलकर की भूमिकाएं जैसी हैं वैसा निभाने में उन्हें भी पूरी सफलता मिली है.

पूरे फिल्म में जो सबसे अहम है वो कहानी है. बॉयोपिक को जब नाटकीयता देने की कोशिश की जाती है तो फिल्म का नुकसान ही होता है. थोड़े मोड़े टेक्निकल कमजोरियां भी कहानी के भावुक और इंस्पायरिंग होने के कारण हमेशा रोचक बनी रहती है. सबसे महत्वपूर्ण श्रीकांत का एक छोटा सा भाषण है. ये भाषण उसने फोर्ब्स की 30 अंडर 30 में स्थान पाने और उद्योग जगत में सफलता के बाद एक खास पुरस्कार के लिए बुलाए जाने पर दिया. अपने भाषण में ही श्रीकांत साफ करता है कि आंखों से भले न दिखे लेकिन सपने तो देखे ही जा सकते हैं. और फिर उन सपनों को पूरा भी किया जा सकता है. सभी को विकलांगों की ऐसे ही मदद की जानी चाहिए.

Tags: Bollywood movies, Rajkumar Rao

Source link