सरकार चाहती है सस्ते लोन से उद्योगों को बढ़ावा.महंगाई दर ऊंची होने से RBI रेपो रेट कम नहीं कर सकता.RBI गवर्नर दास महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहे हैं.
नई दिल्ली. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा है कि ब्याज दरों में कटौती होनी चाहिए. इससे पहले कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर पीयूष गोयल ने भी इसी बात को लेकर अपना रुख जाहिर किया था. स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के एक इवेंट पर अपनी बात रखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इंडस्ट्री के लोगों को ज्यादा ब्याज दरों पर उधार लेने के चलते परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें अपने बिजनेस के विस्तार और अपनी कैपेसिटी बढ़ाने के लिए सस्ती दरों पर पैसा उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है.
दूसरी तरफ, महंगाई दर का 6.2 फ़ीसदी पर पहुंच जाने की वजह से रेपो रेट में बदलाव करना रिजर्व बैंक आफ इंडिया के लिए फिलहाल दूर की कौड़ी नजर आता है. अक्टूबर के महीने के आए ताजा आंकड़ों ने बताया कि महंगाई दर 14 महीने के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. रिजर्व बैंक आफ इंडिया की टारगेट रेंज इस दर को 2 से 6 फीसदी तक सीमित रखने की है. महंगाई दर में जबरदस्त बढ़ोतरी के चलते नियर टर्म में ब्याज दरों में कटौती होगी, ऐसा लगता नहीं है. इस मामले में रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने संकेत दिया है कि अभी ब्याज दरों में कटौती की संभावना के बारे में विचार करना जोखिम भरा हो सकता है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के बयानों पर गौर किया जाए तो फिलहाल वह ब्याज दरों में कटौती के फेवर में नजर नहीं आते. वे रघुराम राजन के नक्शे कदमों पर चलते हुए नजर आ रहे हैं. रघुराम राजन 2013 से 2016 के बीच में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे. 2013 में अत्यधिक महंगाई की वजह से सरकार को कठोर कदम उठाने थे, और इसमें साथ दिया रिजर्व बैंक आफ इंडिया के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने.
रघुराम राजन ने महंगाई को नियंत्रित करने और इकोनॉमी को सही दिशा में बढ़ाने के लिए कई कठोर कदम उठाए. 2013 के तीसरी तिमाही की अगर हम बात करें तो उसे समय महंगाई दर 9 फीसदी भी से अधिक हो चुकी थी. (फिलहाल यह 6.2 फीसदी है.) रिजर्व बैंक में तब रेपो रेट को 7.25 फ़ीसदी से बढ़ाकर 7.5 फ़ीसदी कर दिया था. यह बात सितंबर 2013 की है. 2014 में महंगाई दर कुछ कम होकर 6 से 7 फ़ीसदी के बीच में आ गई. इस समय कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से महंगाई में कुछ राहत मिली थी. महंगाई दर घटी, लेकिन पूर्व गवर्नर ने रेपो रेट को 8 फीसदी कर दिया. 2015 में इन्फ्लेशन रेट 4 से 5 फीसदी के बीच में आई, जबकि रेपो रेट 8 फीसदी से घटकर 6.5 फ़ीसदी तक ही आ पाई थी. 2016 में महंगाई दर 4 से 5 फ़ीसदी की रेंज में आई तो रेपो रेट भी घटकर 6.5 फ़ीसदी कर दी गई.
ताजा हालातों की बात करें तो फिलहाल महंगाई दर 6.2 फीसदी है और रेपो रेट 6.50 फीसदी है. बता दें कि यह वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक की तरफ से दूसरे बैंकों को पैसा दिया जाता है. रेपो रेट अधिक होती है तो बैंक आम आदमी को कर्ज महंगी ब्याज दरों पर देते हैं, और साथ ही पैसा जमा करने वालों को ज्यादा ब्याज दर ऑफर भी करते हैं.
अभी क्या है सरकार की चिंता?
जब रेपो रेट अधिक होता है तो आम लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए पैसा कम रह जाता है. वे या ता डिपॉजिट करवा देते हैं या फिर खर्च के लिए लोन लेना पसंद नहीं करते. बाजार में मांग कम होती है, जबकि सप्लाई अधिक हो जाती है. दूसरी तरफ, ब्याज दरें अधिक होने की वजह से व्यापार करने वाले अपने बिजनेस को विस्तार नहीं दे पाते. कुल मिलाकर कंपनियों की कमाई घटने लगती है और इसका सीधा असर कंपनियों के तिमाही नतीजों में झलकने लगता है.
कंपनियों के तिमाही नतीजों में कमजोरी का असर बिलकुल वही होता है, जो पिछले कुछ दिनों में भारतीय शेयर बाजार में देखने को मिला है. बाजार गिरने लगता है. शेयर बाजार में गिरावट को सरकार की साख से भी जोड़ा जाता है. ऐसे में सरकार की चिंता बढ़ जाती है.
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FIRST PUBLISHED : November 19, 2024, 15:28 IST