आपको याद होगा, कुछ दिन पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान के लिए एक बेल आउट पैकेज जारी किया था. कंगाली की कगार पर खड़े पाकिस्तान को उस पैकेज की नितांत आवश्यकता थी. पैकेज पाने के बाद पाकिस्तान की तरफ से आईएमएफ का बहुत शुक्रिया भी किया गया था. लेकिन अब समझ में आ रहा है कि आईएमएफ ने यूं ही वह पैकेज पाकिस्तान को नहीं दिया था. उसके पीछे का मकसद चीन के पेंच कसने का था. कैसे? चलिए जानते हैं-
दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में पाकिस्तान से आग्रह किया है कि वह किसी भी नए औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Zone) की स्थापना को रोक दे, जिसमें निवेश के लिए विशेष प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं. यह मांग पाकिस्तान की चीन की इंडस्ट्री को आकर्षित करने की योजनाओं पर सीधा प्रभाव डाल सकती है. IMF का यह कदम तब आया है जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ चीन की कंपनियों को पाकिस्तान में और अधिक उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
IMF ने अपनी 10 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में कहा कि पाकिस्तान को नए और मौजूदा स्पेशल इकॉनमिक जोन्स (Special Economic Zones – SEZs) में टैक्स छूट और सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन नहीं देने चाहिए. इस कदम का उद्देश्य निवेश के लिए समान अवसर प्रदान करना है. IMF की इस शर्त का उद्देश्य पाकिस्तान के निवेश वातावरण को सुधरना है, जिसमें टैक्स बेस को मजबूत रखना प्रमुख है. कुल मिलाकर पाकिस्तान की हालत उस महिला जैसी हो गई है, जिसे साहूकार (अमेरिका) का रौब भी झेलना पड़ता है और अपने बलम (चीन) को खुश रखने की मजबूरी भी है. अब देखना यह है कि IMF के दबाव में पाकिस्तान चीन से दूर होगा या नहीं?
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बता दें कि पिछले महीने के आखिरी सप्ताह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने पुष्टि की कि IMF के कार्यकारी बोर्ड ने 37 महीने की अवधि के लिए 7 बिलियन डॉलर का एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) पैकेज मंजूर किया है. IMF से लिए कर्ज पर पाकिस्तान को लगभग 5% ब्याज दर का भुगतान करना होगा.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और IMF की शर्त
पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor – CPEC) के तहत कम से कम 9 विशेष आर्थिक ज़ोन बनाने की योजना बनाई है, जिनमें से कई विकास के विभिन्न चरणों में हैं. IMF का मानना है कि पाकिस्तान को उन उद्योगों और क्षेत्रों को विशेष संरक्षण या छूट नहीं देनी चाहिए, जिनकी प्रोडक्टिविटी कम है. IMF के पाकिस्तान मिशन प्रमुख नाथन पोर्टर के अनुसार, यह विशेष संरक्षण पाकिस्तान की लॉन्ग टर्म आर्थिक वृद्धि में बाधक है, और इसी कारण देश अपने क्षेत्रीय साथियों की तरह स्थायी विकास दर हासिल नहीं कर पाया है.
पाकिस्तान की नई औद्योगिक योजनाओं पर असर
IMF की यह मांग विशेष रूप से उस नए एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन (Export Processing Zone) पर असर डाल सकती है, जिसे पाकिस्तान स्टील मिल्स की जमीन पर कराची में स्थापित किया जाना है. कराची, पाकिस्तान का व्यावसायिक केंद्र है और यह प्रोजेक्ट देश के आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
पाकिस्तान सरकार ने IMF से 7 अरब डॉलर (लगभग ₹58,000 करोड़) का कर्ज मिलने के बाद करीब 100 प्रमुख चीनी उद्योगों को अपने देश के कपड़ा पार्कों (Textile Parks) में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है. ये पार्क सिंध और पंजाब के प्रमुख इलाकों में बनाए जा रहे हैं. शरीफ सरकार विशेष टैक्स छूट और कस्टम ड्यूटी से छूट जैसे प्रोत्साहनों की पेशकश कर निवेशकों को लुभा रही है, ताकि इन औद्योगिक ज़ोनों में नए उद्योग स्थापित किए जा सकें.
हालांकि, चीन ने पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा और ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की हैं, जो देश के प्रमुख आर्थिक गलियारे को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक थीं. लेकिन इस मदद के साथ-साथ पाकिस्तान भारी कर्ज के बोझ तले दब गया है. IMF की नई मांग पाकिस्तान की इस आर्थिक स्थिति पर गहरा असर डाल सकती है, खासकर तब जब वह पहले से ही कर्ज संकट से जूझ रहा है.
IMF क्या है और यह गरीब देशों को कर्ज क्यों देता है?
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक वैश्विक वित्तीय संस्था है, जिसकी स्थापना 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान हुई थी. इसका मुख्यालय वाशिंगटन, डी.सी. में है और इसमें 190 सदस्य देश शामिल हैं. IMF का मुख्य उद्देश्य वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना और गरीबी को कम करना है.
IMF का मानना है कि गरीब देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने से उनकी आर्थिक स्थिरता में सुधार होता है. जब ये देश वित्तीय संकट का सामना करते हैं, तो IMF उन्हें कर्ज देकर उनकी मदद करता है ताकि वे अपने पेमेंट संतुलन को ठीक कर सकें.
यहां यह बताना भी जरूरी है कि आईएमएफ पर सबसे ज्यादा प्रभाव अमेरिका का रहता है. उसके पास वोटिंग की सबसे ज्यादा पावर है. यूएस के पास लगभग 17.43 प्रतिशत वोटिंग पावर है. मतलब ये कि अमेरिका जिस तरफ वोट करेगा, वही बात लगभग स्वीकार्य होगी. तो पाकिस्तान को पैकेज देकर चीन पर लगाम लगाने का काम एक रणनीति के तहत किया गया हो सकता है. वैसे भी अमेरिका ने अपने देश में कई चाइनीज़ उत्पादों पर ड्यूटी बढ़ाई है, जिससे चीन को परेशानी हो रही है.
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FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 17:18 IST