नेस्ले इंडियाने इस तिमाही में 2020 के बाद से पहली बार अपने रेवेन्यू में गिरावट दर्ज की.यही हाल पूरी FMCG इंडस्ट्री का है, जिसमें हिंदुस्तान यूनिलीवर भी शामिल है.लोग खर्च नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि पैसा नहीं है और उनकी प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं.
नई दिल्ली. मध्यम वर्ग को किसी भी अर्थव्यवस्था का आधार माना जाता है. यही आधार भारत में महंगाई की मार से जूझ रहा है. महंगाई के चलते शहरी क्षेत्रों में लोग न केवल खाने-पीने की चीजों पर, बल्कि सामान्य रोजमर्रा की चीजों जैसे बिस्कुट और फास्ट फूड तक पर खर्च घटा रहे हैं. इससे न केवल बाजार प्रभावित हो रहा है, बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि भी सवालों के घेरे में आ रही है. कोविड महामारी के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः शहरी खपत पर निर्भर रही है, लेकिन अब यह स्थिति बदलती नजर आ रही है.
इस बात को इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि नेस्ले इंडिया (Nestle India) ने इस तिमाही में 2020 के बाद से पहली बार अपने रेवेन्यू में गिरावट दर्ज की है. इकॉनमिक्स टाइम्स की एक एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेस्ले इंडिया के चेयरमैन सुरेश नारायणन का मानना है कि इस बदलाव का बड़ा कारण मिडिल क्लास का सिकुड़ना है. उनका कहना है, “एक बड़ा उच्च वर्ग है जो बेहिसाब खर्च कर रहा है, लेकिन बीच का मध्यम वर्ग, जो FMCG कंपनियों का मुख्य बाजार था, अब सिकुड़ता दिख रहा है.”
महंगाई और मध्यम वर्ग की बढ़ती चुनौतियां
भारतीय मिडल क्लास के लिए कोई आधिकारिक रूप से परिभाषित आय श्रेणी नहीं है, लेकिन इसे भारत की 1.4 अरब जनसंख्या का लगभग एक तिहाई माना जाता है. यह वर्ग आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और देश की विकास दर को प्रभावित करता है. यह वर्ग न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस वर्ष के चुनावों में भाजपा नीत सरकार के प्रदर्शन पर मिडल क्लास की नाराजगी का असर देखा गया.
सेलरी में कम इंक्रीमेंट और पर्सनल लोन हैं विलेन
भारत की अर्थव्यवस्था में 7.2% वृद्धि का अनुमान है, जो इसे दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज बनाता है. लेकिन शहरी क्षेत्रों में घरेलू खपत का गिरता स्तर आर्थिक वृद्धि पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है. सिटीबैंक के अनुसार, अक्टूबर 2024 में शहरी खपत दो वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई.
सिटीबैंक के मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती के अनुसार, “कुछ गिरावट अस्थायी हो सकती है, लेकिन मुख्य कारक अभी भी अनुकूल नहीं हैं.” चक्रवर्ती के अनुसार शहरी भारतीयों की कम वेतन वृद्धि और पर्सनल लोन पर कड़े नियमों ने खपत पर नकारात्मक प्रभाव डाला है.
उपभोक्ता की प्राथमिकताओं में आया बदलाव
महंगाई दर औसतन 5 फीसदी रही है, लेकिन खाद्य महंगाई 8 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. अक्टूबर 2024 में खुदरा महंगाई 14 महीनों के उच्चतम स्तर 6.2 फीसदी तक पहुंच गई, जिसमें खाद्य महंगाई 10.9 प्रतिशत तक थी. नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार, त्योहारी सीजन में खुदरा बिक्री में केवल 15 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई, जो पिछले वर्ष की वृद्धि का लगभग आधा है.
इकॉनमिक्स टाइम्स की ही रिपोर्ट में दिल्ली निवासी राजवंती दहिया का बयान दिया है, जो अपने पति की मासिक पेंशन पर निर्भर हैं. राजवंती का कहना है कि “हमने इस त्योहार में कोई खास खर्च नहीं किया. हमारी बचत अब बहुत कम रह गई है.”
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भारत के सेंट्रल बैंक का मानना है कि ग्रामीण मांग में सुधार और सर्विस क्षेत्र की मजबूती के चलते GDP में 7.2% की वृद्धि संभव है. इसके अलावा, सरकार द्वारा अच्छे-खासे निवेश से भी मांग में सुधार की संभावना है. लेकिन कुछ अर्थशास्त्री इस बारे में ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं, और GDP ग्रोथ का अनुमान 6.8% तक रखते हैं.
ब्रांड छोड़कर अनब्रांडेड चीजों की तरफ झुकाव
इस नकारात्मक माहौल का असर FMCG कंपनियों पर भी पड़ा है. Nifty FMCG इंडेक्स में 13% की गिरावट दर्ज की गई, जबकि Nifty 50 में 7.4% की कमी आई है. हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसे प्रमुख FMCG ब्रांडों ने भी अपने कई उत्पादों की बिक्री में कमी दर्ज की है.
उपभोक्ता अब ब्रांडेड वस्तुओं की जगह सस्ते अनब्रांडेड विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं. McDonald’s और Burger King जैसी फास्ट-फूड चेन ने भी अपने स्टोर की बिक्री में कमी दर्ज की है. बर्गर किंग के सीईओ राजीव वर्मन का कहना है कि “लोग अभी भी आ रहे हैं, लेकिन वे सस्ते विकल्प चुन रहे हैं.”
Tags: Consumer and Retail industry, GDP growth, India’s GDP
FIRST PUBLISHED : November 13, 2024, 13:27 IST