रेपो रेट न भी घटाए RBI तो कर सकता है ये ऐलान, आम लोगों के हाथ में आएगा पैसा, घूमेगा ग्रोथ का मीटर

नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) अपनी समीक्षा बैठक कर रही है. कल, 6 दिसंबर को, पता चलेगा कि रिजर्व बैंक ने क्या प्लान किया है? मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों की राय है कि इस बार भी आरबीआई अपनी रेपो रेट में बदलाव नहीं करेगा और उसे 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखेगा. यदि ऐसा होता है तो लगातार 11वीं बार कोई बदलाव नहीं होगा. कुछ विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि आरबीआई कैश रिजर्व रेश्यो (Cash Reserve Ratio – CRR) में कटौती कर सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि सितंबर तिमाही में भारत की जीडीपी 5.4 प्रतिशत पर आ गई, जो 7 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर है.

यदि आरबीआई द्वारा रेपो रेट में बदलाव नहीं किया जाता तो लोन सस्ते नहीं होंगे और ब्याज दरें भी जस-की-तस बनी रहेंगी. लेकिन, सीआरआर में अगर बदलाव होता है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था को सहारा जरूर दे सकता है. ऐसे में सवाल है कि आखिर ये कैश रिर्जव रेश्यो है क्या? कैसे यह इकोनॉमी को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है?

कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) क्या है?
हर बैंक को अपनी कुल जमा राशि का एक हिस्सा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास रिजर्व के तौर पर रखना पड़ता है. इसी हिस्से को किसी बैंक का सीआरआर कहा जाता है. वर्तमान में यह प्रतिशत 4.5 है. इसका मुख्य उद्देश्य बैंकिंग सिस्टम में तरलता (liquidity) को कंट्रोल करना, मुद्रास्फीति (inflation) को संभालना और अत्यधिक ऋण वितरण (excessive lending) पर लगाम लगाना है.

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अगर मुद्रास्फीति अथवा महंगाई ज्यादा हो तो आरबीआई सीआरआर को बढ़ाता है, ताकि बैंकों के पास लोन देने के लिए कम धन उपलब्ध हो. ऐसा करने से बाजार में पैसे का प्रवाह घटता है और कीमतों में गिरावट आती है. लेकिन जब आर्थिक वृद्धि धीमी होती है, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है, तो आरबीआई सीआरआर को कम कर सकता है. इससे बैंकों के पास ज्यादा पैसा उपलब्ध हो जाता है, जिसे वे लोन के रूप में बांट सकते हैं. लोगों और इंडस्ट्री के हाथ में ज्यादा पैसा आने से इकोनॉमी का पहिया अच्छे से घूमने लगता है.

सीआरआर कटौती पर क्यों हो रही चर्चा
दूसरी तिमाही में उम्मीद से कम जीडीपी ग्रोथ और बैंकिंग सिस्टम में धन की तंगी (liquidity crunch) ने एक्सपर्ट्स को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आरबीआई सीआरआर को कम कर सकता है. अगर सीआरआर में कटौती की जाती है, तो बैंकों के पास ज्यादा पैसा उपलब्ध होगा, जिसे वे उधार दे सकते हैं. यह निवेश को डायरेक्ट बढ़ावा देगा और आर्थिक गतिविधियों को तेज करेगा.

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अगर आरबीआई सीआरआर को 50 बेसिस प्वाइंट (bps) यानी 0.5 प्रतिशत कम करता है, तो यह बैंकिंग सिस्टम में 1.1 लाख करोड़ से 1.2 लाख करोड़ रुपये तक की धनराशि फ्री हो सकती है. वहीं, अगर 25 बेसिस प्वाइंट यानी 0.25 प्रतिशत की कटौती होती है, तो 55,000 करोड़ से 60,000 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध होगी.

इसके अलावा, आरबीआई ने हाल ही में रुपये को डॉलर के मुकाबले स्थिर बनाए रखने के लिए फॉरेन करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप भी किया है. सीआरआर कटौती से इससे उत्पन्न चुनौतियों को संतुलित करने में भी मदद मिल सकती है.

Tags: Rbi policy, Shaktikanta Das

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