नई दिल्ली. दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (DND) फ्लाईवे पर टोल टैक्स नहीं लगेगा और यह यह अब टोल-फ्री रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फ्लाईवे पर टोल टैक्स लगाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है. याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ निजी कंपनी ने यह याचिका दायर की थी. इस याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2016 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें फ्लाईवे को टोल फ्री करने को कहा गया था. अदालत ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों के साथ नोएडा प्राधिकरण को फटकार लगाई, जिन्होंने अवैध रूप से इस परियोजना को नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) को सौंपा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “NTBCL को दिया गया अनुबंध अनुचित, अन्यायपूर्ण और संवैधानिक मानदंडों के विपरीत था.”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा-टोल वसूलना जारी रखने की कोई वजह नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने 53 पन्नों का फैसला लिखा, जिसमें एनटीसीबीएल के सभी तर्कों को खारिज कर दिया, जिनमें वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी द्वारा पेश किए गए ₹30 करोड़ की अतिरिक्त वसूली के दावे भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि एनटीबीसीएल ने परियोजना लागत से कहीं अधिक धन वसूल किया, जिससे “जनता की पीड़ा के बदले NTBCL को अनुचित लाभ” हुआ. अदालत ने कहा कि एनटीसीबीएल के साथ अनुबंध ऐसे अनुचित और अव्यवहारिक शर्तों से भरे हुए थे, जो “न केवल इस अदालत को चौंकाते हैं, बल्कि सार्वजनिक नीति के खिलाफ हैं.”
2016 तक वसूली पूरी, टोल जारी रखने का कोई कारण नहीं
कोर्ट ने कहा कि NTBCL ने 31 मार्च 2016 तक परियोजना लागत, रखरखाव खर्च और अपने शुरुआती निवेश पर पर्याप्त लाभ वसूल लिया था. इसके बाद उपयोग शुल्क/टोल वसूलने का कोई औचित्य नहीं था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “IL&FS और NTBCL ने आवश्यक सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के नाम पर जनता से सैकड़ों करोड़ रुपये वसूल लिए. यह तब तक संभव नहीं था जब तक कि दोनों राज्य सरकारों और नोएडा के अधिकारियों की मिलीभगत न होती, जिन्होंने अनुबंधीय दायित्वों को नजरअंदाज कर दिया.”
भ्रष्टाचार की ओर इशारा
कोर्ट ने परियोजना लागत वृद्धि के फॉर्मूले और उपयोग शुल्क वसूलने की लीज बढ़ाने की प्रक्रिया पर सख्त टिप्पणी की। “यह अकल्पनीय है कि सरकारों के कई स्तर, जिनमें सबसे कुशल वित्तीय विशेषज्ञ शामिल थे, यह नहीं देख सके कि यह फॉर्मूला जनता पर अनुचित बोझ डालेगा.”
पीठ ने कहा, “कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों ने परियोजना के फंड को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए हेरफेर किया. यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत जांच के लिए उपयुक्त मामला है, हालांकि अब इस पर कार्रवाई के लिए समय निकल चुका है.”
CAG रिपोर्ट के खुलासे
कोर्ट ने कहा, “CAG रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं कि एनटीबीसीएल के निदेशकों, जिनमें प्रदीप पुरी (जो एक वरिष्ठ नौकरशाह थे) शामिल थे, ने कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई। फिर भी, उनके सभी खर्च, जिसमें उच्च वेतन भी शामिल था, परियोजना की कुल लागत में जोड़ दिए गए.”
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FIRST PUBLISHED : December 21, 2024, 07:58 IST