तलाक के बाद पार्टनर से मिले गुजारे-भत्ते पर देना होगा टैक्स? जानिए नियम

नई दिल्ली. हार्दिक पांड्या और नताशा स्टेनकोविक के रिश्तों में परेशानियों के बारे में महीनों की अटकलों के बाद, सेलिब्रिटी जोड़े ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ते हुए अलग होने का ऐलान कर दिया. हार्दिक पांड्या और नताशा स्टेनकोविक ने 18 जुलाई को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट के जरिए लोगों को बताया की अब दोनों के रास्ते अलग हो गए हैं. नताशा ने अपने बेटे अगस्त्य पांड्या के साथ सर्बिया (अपने माता-पिता के घर) के लिए रवाना होने के एक दिन बाद इस बात का खुलासा किया.

कुछ खबरों में दावा किया जा रहा है कि आपसी सहमति से लिए गए इस फैसले में हार्दिक अपनी संपत्ति का 70 फीसदी हिस्सा नताशा को एलिमनी मनी के रूप में देने वाले हैं. हालांकि, इन खबरों की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन तलाक के इस तरह के मामले इनकम टैक्स का भी विषय बन जाते हैं. आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि तलाक में मिली रकम यानी एलिमनी को लेकर भारत के टैक्स कानून क्या कहते हैं…

क्या है एलिमनी?
आगे बढ़ने से पहले ये जान लें कि एलिमनी क्या है. अगर पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो पति की ओर से पत्नी को गुजाारे के लिए भत्ता मिलता है जिसे एलिमनी या गुजारा भत्ता कहते हैं. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोर्ट पत्नी को तलाक के बाद जीवन-यापन के लिए स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony) का हकदार बना सकता है. ज्यादातर मामलों में पत्नी को भत्ता मिलता है और पति उसका भुगतान करता है. कुछ मामलों में कोर्ट इससे उलट भी फैसला सुना सकता है और पत्नी को तलाक के बाद पति के जीवन-यापन के लिए एलिमनी का भुगतान करने को कह सकता है. अगर पत्नि की आर्थिक स्थिती ठीक हो और कोई स्थाई नौकरी या बिजनेस हो तो कोर्ट एलिमनी नहीं देने का भी फैसला सुना सकता है.

एलिमनी की रकम कैसे तय होती है?
भरण-पोषण के लिए पत्नि का गुजारा भत्ता तय करने का कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है. कोर्ट हर मामले में दोनों पक्षों की परिस्थितियों के हिसाब से तय करता है कि कितना एलिमनी दिया जाना चाहिए. दोनों की कमाई, उनकी चल-अचल संपत्तियां, बच्चे (किसके साथ रहेंगे) आदि जैसे कई फैक्टर पर गौर करने के बाद एलिमनी की रकम तय की जाती है. एलिमनी का भुगतान दो तरीके से होता है – या तो एकमुश्त भुगतान करना होता है यानी पूरे पैसे एक बार में देने होते हैं, या फिर मासिक, तिमाही या छमाही आधार पर किस्तों में भुगतान करना पड़ता है.

एकमुश्त भुगतान पर टैक्स नहीं
भारत के इनकम टैक्स कानून में एलिमनी को लेकर अलग से कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में एलिमनी पर टैक्स के नियमों का लागू होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसका भुगतान किस तरह से किया जा रहा है. एक बार में किए जाने वाले भुगतान को कैपिटल रिसिप्ट माना जाता है. आयकर कानून कैपिटल रिसिप्ट को इनकम नहीं मानता है. मतलब एकमुश्त गुजारा भत्ता मिलने पर टैक्स की देनदारी नहीं बनती है.

ऐसे भुगतान पर बन जाती है देनदारी
अगर एलिमनी का मासिक या तिमाही आधार पर किस्तों में भुगतान किया जा रहा है, तब इनकम टैक्स की देनदारी बनती है. इस तरह के भुगतान को रेवेन्यू रिसिप्ट माना जाता है, जो भारत के आयकर कानून के हिसाब से आय है. इसे इनकम मान लिए जाने पर इनकम टैक्स की देनदारी भी बनेगी. ऐसे मामलों में टैक्स का कैलकुलेशन एलिमनी पाने वाले के स्लैब के हिसाब से होता है.

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