ट्रंप का मानना है कि रिन्यूवेबल एनर्जी परियोजनाएं अमेरिका को कमजोर कर रही हैं. पिछली बार भी ट्रंप ने सत्ता संभालने के बाद पेरिस जलवायु समझौते से हाथ खींच लिया था.ट्रंप ने एनर्जी के पारंपरिक स्त्रोतों जैसे तेल और नेचुरल गैस के खर्च को बढ़ावा दिया था.
नई दिल्ली. डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव भारी बहुमत से जीत लिया है. ट्रंप के अमेरिका की कमान संभालने से न केवल अमेरिका बल्कि, पूरे विश्व में आर्थिक और सामरिक बदलाव दिख सकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप रिन्यूवेबल एनर्जी के विरोधी रहे हैं और उन्होंने वादा किया है कि वे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को रोक देंगे. यही वजह है कि उनके चुनाव जीतते ही अमेरिका की रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के शेयर तो गिरे ही हैं, साथ ही भारतीय कंपनियों के स्टॉक्स में भी सुस्ती छाई हुई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देश की सांसे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से ‘थम’ रही हैं, ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप क्या उनकी मुश्किलें रिन्यूवेबल एनर्जी पर लगाम लगाकर और बढ़ाएंगे.
गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन को एक महत्वपूर्ण मुद्दा मानने से इनकार किया है और इसे “धोखा” करार दिया है. उनका मानना है कि रिन्यूवेबल एनर्जी परियोजनाएं देश की ऊर्जा स्वतंत्रता को कमजोर कर सकती हैं. पिछली बार भी ट्रंप ने सत्ता संभालने के कुछ ही समय के भीतर पेरिस जलवायु समझौते से हाथ खींच लिया. ये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से जुड़ा एग्रीमेंट था. अमेरिका में चूंकि इंडस्ट्रीज के चलते ग्रीन हाउस एमिशन ज्यादा है, लिहाजा उसका टारगेट भी बड़ा था. हालांकि ट्रंप प्रशासन ने इसे देश के आर्थिक हितों के खिलाफ बताते हुए इससे अलग होने का ऐलान कर दिया था. अपने कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने एनर्जी के पारंपरिक स्त्रोतों जैसे तेल और नेचुरल गैस के खर्च को बढ़ावा दिया था.
रिन्यूवेबल एनर्जी सेक्टर के लिए चुनौतियां
ट्रंप ने कहा है कि वह बाइडेन प्रशासन की रिन्यूवेबल एनर्जी नीतियों को पलट देंगे, जिसमें टैक्स क्रेडिट्स को समाप्त करना शामिल हो सकता है, जो कि इस उद्योग की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं. ट्रंप का ऊर्जा नीति में फॉसिल फ्यूल्स को प्राथमिकता देने का इरादा रिन्यूवेबल सेक्टर के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर सकता है. उनका यह वादा कि वह ऑफशोर विंड फार्म्स को समाप्त करेंगे, इस क्षेत्र में निवेशकों की चिंताओं को बढ़ा रहा है. कई विश्लेषकों का मानना है कि यदि ट्रंप अपनी नीतियों पर अमल करते हैं, तो यह क्षेत्र काफी प्रभावित होगा और विकास की संभावनाएं कम हो जाएंगी.
अनिश्चितता का माहौल
डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद अमेरिका की रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले दिन से ही रिन्यूवेबल एनर्जी परियोजनाओं को रोकने का वादा किया, जिससे इस क्षेत्र में निवेशकों के बीच चिंता और अनिश्चितता बढ़ गई. हालांकि ट्रंप की नीतियों को लागू करने में कई बाधाएं आ सकती हैं, फिर भी उनकी योजनाओं ने पहले से ही रिन्यूवेबल एनर्जी निवेशकों के बीच चिंता पैदा कर दी है. इससे यह स्पष्ट होता है कि ट्रंप का चुनाव रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के लिए एक कठिन समय लेकर आया है.
रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट
ट्रंप की जीत के तुरंत बाद, अमेरिका की प्रमुख रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई. Orsted (जो कि सबसे बड़ी ऑफशोर विंड डेवलपर है) के शेयरों में 14 फीसदी की गिरावट आई, जबकि वेस्टॉस (Vestas) और नॉर्डेक्स (Nordex) जैसे विंड टरबाइन निर्माताओं के शेयर क्रमशः 11 फीसदी और 7.5 फीसदी गिरे. इसी तरह नेक्स्टएरा एनर्जी के शेयर 5 फीसदी तो क्लियरवे एनर्जी शेयर करीब सात फीसदी गिर गया. ब्रेकफिल्ड रिन्यूवेबल पार्टनर्स के शेयर में भी 6 फीसदी की गिरावट आई है.
भारतीय कंपनियों पर भी हुआ असर
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने का असर भारतीय रिन्यूवेबल एनर्जी कंपनियों के शेयरों पर भी दिख रहा है और लगभग सभी प्रमुख कंपनियों के शेयर लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं. सुजलॉन एनर्जी का शेयर आज 2 फीसदी की गिरावट के साथ 68.05 रुपये पर कारोबार कर रहा है. जेनसोल इंजीनियरिंग का शेयर सुबह 10:50 बजे 1 फीसदी की गिरावट के साथ 839 रुपये पर कारोबार कर रहा है. आईनॉक्स विंड एनर्जी का शेयर भी करीब दो फीसदी गिरकर कारोबार कर रहा है. वारी रिन्यूवेबल का शेयर आज हल्की तेजी लिए हुए है.
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FIRST PUBLISHED : November 7, 2024, 11:53 IST