ये आंकड़े देख लें तो दुश्‍मनी भूल जाएंगे ट्रूडो, निकल जाएगी सारी हेकड़ी

हाइलाइट्स

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्‍तान के समर्थन में बोल रहे हैं. इसकी वजह से भारत के साथ कनाडा के रिश्‍तों में खटास आ रही है. कारोबारी आंकड़ों में देखें तो भारत का पलड़ा काफी भारी नजर आता है.

नई दिल्‍ली. साल 1947 में भारत की आजादी के बाद से ही कनाडा के साथ हमारे रिश्‍ते हमेशा बेहतर रहे हैं. दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की बानगी सामाजिक और सांस्‍कृतिक समावेश में भी दिखाई देती है. आंकड़े बताते हैं कि कनाडा में करीब 8 लाख सिख परिवार रहते हैं. इतनी बड़ी संख्‍या को प्रभावित करने के लिए ही मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्‍तानी कार्ड खेल रहे हैं. इससे दोनों देशों के राजनयिक संबंध इस कदर बिगड़ चुके हैं कि विश्‍लेषक अब कनाडा को भारत के लिए दूसरा पाकिस्‍तान बनने का खतरा भी बताने लगे हैं.

इसी हफ्ते पाकिस्‍तान की राजधानी इस्‍लामाबाद में हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी बातों-बातों में कनाडा को चरमपंथी और अलगाववादी कहकर निशाना भी साधा. कनाडा के पीएम ट्रूडो इस मतभेद को लगातार हवा भी देते जा रहे हैं. वे शायद भूल गए हैं कि राजनयिक संबंधों का असर कारोबारी रिलेशन पर भी पड़ता है. अगर जाहिर तौर पर वे भारत के लिए दूसरा पाकिस्‍तान बन गए तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा कनाडा को ही भुगतना पड़ेगा. हम आपको दोनों देशों के व्‍यापार और जरूरत को लेकर कुछ आंकड़े पेश करते हैं, जो सारी तस्‍वीर साफ कर देंगे.

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कनाडा की 600 कंपनियां भारत में
जी, बिलकुल सही पढ़ा आपने. कनाडा की करीब 600 कंपनियां अभी भारत में कारोबार कर ही हैं. अब जरा याद करके बताइये कि पाकिस्‍तान की यहां कितनी कंपनियां हैं. जाहिर है, जवाब होगा एक भी नहीं. तो, अगर ट्रूडो ने जल्‍द ही अपने तेवर नहीं बदले और भारत के साथ पाकिस्‍तान जैसा सलूक करना चाहा तो जाहिर तौर पर दुनिया के इस सबसे बड़े बाजार से उनकी 600 कंपनियों को बोरिया-बिस्‍तरा समेटना पड़ सकता है. इतना ही नहीं कनाडा की करीब 1000 कंपनियां हमारे बाजार में अपना बिजनेस चलाती हैं, जिसमें सबसे बड़ी कंपनी रॉयल बैंक ऑफ कनाडा है.

इस लिहाज से भारत की तरफ नजर डालें तो यहां से कुल मिलाकर 70-80 कंपनियां ही हैं, जो कनाडा में जाकर अपना बिजनेस करती हैं. इसमें सभी 30 कंपनियों ने ही बड़ा निवेश किया है. इसमें टीसीएस, आदित्‍य बिड़ला ग्रुप, टाटा स्‍टील, महिंद्रा, विप्रो और आईसीआईसीआई बैंक जैसे बड़े नाम हैं. जाहिर है कि अगर हालात पाकिस्‍तान जैसे होते हैं तो इसका नुकसान भी पाकिस्‍तान की राह पर चलने वाले कनाडा को ही होगा.

हमारा कितना व्‍यापार कनाडा से
अगर ट्रेड के मोर्चे पर देखें तो भारत का 1 फीसदी से भी कम व्‍यापार कनाडा से होता है, जो 217 देशों के व्‍यापार में 33वें नंबर पर है. 2024 की बात करें तो अप्रैल से अक्‍टूबर तक सिर्फ 2.68 अरब डॉलर (22.5 हजार करोड़ रुपये) का सामान ही कनाडा से मंगाया गया है. पिछले साल के आंकड़े देखें तो हमने कनाडा को 4 अरब डॉलर से ज्‍यादा निर्यात किया, जबकि 3.88 अरब डॉलर का सामान मंगाया था.

हमारे साथ खड़ा है पुराना दोस्‍त
मान लीजिए कि व्‍यापारिक संबंध ज्‍यादा खराब ही हो जाते हैं तो भी भारत को कनाडा से सिर्फ 2 चीजें मंगाने में दिक्‍कत होगी और उसकी भरपाई हमारा पुराना दोस्‍त रूस कर देगा. भारत अपनी जरूरत की आधी मसूर दाल कनाडा से मंगाता है, जबकि आधा यानी करीब 49 फीसदी ऑस्‍ट्रेलिया से मंगाता है. जाहिर है कि हमारे पास ऑस्‍ट्रलिया के रूप में बड़ा विकल्‍प है. इसके अलावा हम 52 फीसदी मटर भी कनाडा से मंगाते हैं, जबकि रूस 30 फीसदी का निर्यात करता है. जाहिर है कि इसके विकल्‍प के तौर भी हमारे पास रूस का साथ है. तीसरी बड़ी चीज हम कनाडा से पोटाश मंगाते हैं, जिसका विकल्‍प रूस और यूक्रेन के रूप में मौजूद है.

अगर भारत से निर्यात करने की बात करें तो हम कनाडा को जरूरी दवाओं की बड़ी सप्‍लाई करते हैं. इसके अलावा कपड़े, डायमंड, केमिकल, रत्‍न एवं आभूषण, सी-फूड, इंजीनियरिंग के सामान, चावल और इलेक्ट्रिक उपकरणों की बड़ी सप्‍लाई करते हैं. अगर हमारी ओर से इसमें कटौती की जाती है तो कनाडा को निश्चित तौर पर समस्‍या हो जाएगी.

भारत पर कहां होगा ज्‍यादा असर
कनाडा से संबंध बिगड़ने पर सबसे ज्‍यादा असर सिर्फ एक चीज पर होगा और वह हैं हमारे छात्र. ऐसा इसलिए, क्‍योंकि भारत से विदेश पढ़ने जाने वाले कुल छात्रों में से 40 फीसदी तो सिर्फ कनाडा का रुख करते हैं. हालांकि, इसका सबसे ज्‍यादा फायदा भी कनाडा को मिलता है, क्‍योंकि इतनी बड़ी संख्‍या में भारतीय छात्रों के जाने से उसकी हर साल करोड़ों डॉलर में कमाई भी होती है. बावजूद इसके हमारे पास विकल्‍प के तौर पर रूस और अमेरिका भी मौजूद हैं.

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