छोटी-सी दुकान से हार गया बर्गर किंग, अदालत ने नहीं चलने दी दादागीरी, किया दूध का दूध पानी का पानी

नई दिल्ली. कल्पना कीजिए, आपने एक छोटी-सी दुकान खोली है. सालों से आप उस दुकान को चला रहे हैं और लोगों को आपकी आइटम या सेवाएं पसंद आ रही हैं. अचानक एक बड़ी कंपनी आती है और दावा करती है कि आपकी दुकान का नाम उनका है और आपको दुकान बंद करनी होगी या नाम बदलना होगा. ऐसे में आप क्या करेंगे? ऐसा ही कुछ हुआ पुणे के एक बर्गर किंग के साथ. नाम की लड़ाई 13 साल चली और बर्गर किंग जीत गया है. चेन वाला बर्गर किंग नहीं, बल्कि पुणे वाला.

पुणे में एक छोटा सा बर्गर किंग था. यह रेस्तरां साल 1992 से चल रहा था. लोग यहां बर्गर खाने के लिए आते थे. फिर 2014 में अमेरिका की एक बड़ी बर्गर किंग कंपनी भारत आई. इस बड़ी कंपनी ने कहा कि पुणे वाले बर्गर किंग ने उनका नाम चोरी किया है और उन्हें कोर्ट में घसीट लिया. अदालत ने पुणे वाले बर्गर किंग के पक्ष में फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि पुणे वाला बर्गर किंग पहले से ही इस नाम से चल रहा था. अमेरिकी कंपनी बाद में आई. इसलिए पुणे वाले बर्गर किंग को अपना नाम रखने का पूरा अधिकार है.

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हमारी सहयोगी वेबसाइट मनीकंट्रोल की खबर के मुताबिक पुणे का नामी बर्गर किंग कानूनी लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय फास्ट-फूड दिग्गज अमेरिका स्थित बर्गर किंग कॉर्पोरेशन (Burger King Corporation) के खिलाफ विजयी रहा है. पुणे के कमर्शियल कोर्ट के जिला न्यायाधीश सुनील वेदपाठक ने इस मल्टीनेशनल कंपनी की याचिका खारिज कर दी है, जिससे पुणे के बर्गर किंग को अपने नाम के तहत काम करते रहने का रास्ता साफ हो गया है.

बर्गर किंग का नाम हटवाने की थी कवायद
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब बर्गर किंग कॉर्पोरेशन ने पुणे के कैंप और कोरेगांव पार्क में बर्गर किंग आउटलेट्स के मालिक अनाहिता और शापूर ईरानी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की. बर्गर किंग कॉर्पोरेशन दुनियाभर में 13,000 रेस्तरांओं का विशाल नेटवर्क चलाता है. ग्लोबल कंपनी ने पुणे स्थित रेस्तरां को “बर्गर किंग” नाम का उपयोग करने से रोकने की मांग की. यह दावा किया गया है कि यह ट्रेडमार्क का उल्लंघन है. नुकसान की भरपाई के साथ इसे स्थायी तौर पर रोकने की अपील की गई.

16 अगस्त को दिए गए अपने फैसले में न्यायाधीश वेदपाठक ने ईरानी परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पुणे के बर्गर किंग ने 1992 से इस नाम और ट्रेडमार्क का उपयोग किया था, जो अमेरिका की कंपनी द्वारा भारत में ट्रेडमार्क रजिस्टर कराने से बहुत पहले का है. अदालत ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि जहां मल्टीनेशनल कंपनी लगभग 30 वर्षों तक भारत में इस नाम से नहीं चल रही थी, वहीं पुणे के आउटलेट ने लगातार “बर्गर किंग” ब्रांड के तहत अपने ग्राहकों को सेवा दी. इससे उनका इस नाम का उपयोग कानूनी और वास्तविक था.

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ईरानी परिवार ने यह भी खुलासा किया कि उन्हें उत्पीड़न सहना पड़ा और कानूनी कार्यवाही के कारण हुए मानसिक तनाव के लिए 20 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की. हालांकि, अदालत ने इस दावे को सही नहीं पाया.

2014 में आई थी बर्गर किंग
बर्गर किंग दुनिया भर में फास्ट फूड के शौकीनों के बीच एक जाना-माना नाम है. इस अमेरिकी कंपनी ने 2014 में भारत में प्रवेश किया था. आज यह देश के कई शहरों में अपने बर्गर और अन्य फास्ट फूड आइटम के लिए मशहूर है. दुनिया भर में बर्गर किंग का नेटवर्क काफी बड़ा है. इसके हजारों रेस्तरां दुनिया के विभिन्न देशों में मौजूद हैं. कंपनी की कुल कमाई अरबों डॉलर में है. बर्गर किंग को अपने फ्लेम-ग्रिल्ड बर्गर के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य फास्ट फूड कंपनियों से अलग बनाता है.

वित्तीय वर्ष 2024 में बर्गर किंग ने समायोजित शुद्ध लाभ लगभग $340 मिलियन रहा, और कुल रेवेन्यू में भी साल दर साल अच्छी-खासी वृद्धि दर्ज की गई. इस वृद्धि का मुख्य कारण सभी सेगमेंट्स में सिस्टम-वाइड बिक्री रही, जिसमें बर्गर किंग का योगदान प्रमुख था.

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