संकट छाया तो रतन टाटा ने निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए तैयार कर दिया हेलीकॉप्‍टर

हाइलाइट्स

साल 2001 में टाटा फाइनेंस में फ्रॉड हुआ था. इससे निवेशकों के 500 करोड़ फंस गए थे. रतन टाटा ने सारे पैसे वापस लौटाने को कहे थे.

नई दिल्‍ली. कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं, जिनके चले जाने के बाद भी चर्चे कम नहीं होते. रतन टाटा भी ऐसे ही नायाब व्‍यक्तित्‍व के धनी थे. उनका कारोबार जितना बड़ा है, हृदय उससे भी विशाल था. यह किस्‍सा आज से करीब 23 साल पहले का है, जब टाटा समूह की कंपनी टाटा फाइनेंस एक संकट में फंस गई थी और कंपनी के कुछ अधिकारियों की वजह से दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी. रतन टाटा को जब पता चला कि तो उन्‍होंने निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए बाकायदा हेलीकॉप्‍टर को स्‍टैंडबाई मोड पर खड़ा करा दिया था.

दरअसल, किस्‍सा है साल 2001 का. उस समय न तो आज की तरह यूपीआई का बोलबाला था और न ही नेट बैंकिंग का इस्‍तेमाल होता था. बाजार नियामक सेबी के जांच अधिकारी शंकर शर्मा ने टाटा फाइनेंस को बताया कि उसके मैनेजमेंट के कुछ अधिकारियों ने अपने फायदे के लिए निवेशकों की पूंजी संदिग्‍ध शेयरों में लगा दी है. कंपनी की ओर से सब्सिडियरीज को 500 करोड़ से ज्‍यादा का लोन भी बांट दिया गया है. इसका खुलासा होने पर टाटा फाइनेंस दिवालिया होने की कगार पर आ गई.

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फिर मदद को आगे आए रतन टाटा
फ्रॉड का पता चलने पर तत्‍कालीन चेयरमैन रतन टाटा मदद के लिए आगे आए और पैरेंट कंपनी टाटा संस से निवेशकों की पूंजी सुरक्षित करने और उचित कानूनी कार्रवाई करने को कहा. ‘जमशेदजी टाटा : पॉवरफुल लर्निंग फॉर कॉरपोरेट सक्‍सेस’ नाम से किताब लिखने वाले टाटा समूह के दिग्‍गज अधिकारी आर. गोपालकृष्‍णन और हरीश भट्ट ने खुलासा किया है कि तब रतन टाटा ने निवेशकों का पैसा तत्‍काल लौटाने के लिए बाकायदा हेलीकॉप्‍टर को स्‍टैंडबाई मोड पर खड़ा कर दिया था.

क्‍या था मामला
शंकर शर्मा ने अप्रैल, 2001 में टाटा फाइनेंस लिमिटेड के तत्‍कालीन प्रबंध निदेशक दिलीप पेंडसे के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए थे. उन्‍होंने इसकी जानकारी सेबी सहित तमाम अखबारों को भी दी थी. कंपनी पर भी गलत जानकारी देकर निवेशकों से फ्रॉड करने का आरोप लगा. हजारों लोगों ने अपनी जमा पूंजी इस कंपनी में निवेश की थी. कंपनी के ऑडिट में भी शिकायत सही पाई गई और हजारों निवेशकों का भरोसा टूटने का जोखिम पैदा हो गया.

4 लाख निवेशकों का फंस गया था पैसा
जांच में पाया गया कि करीब 4 लाख छोटे निवेशकों का 875 करोड़ रुपया फ्रॉड में फंस गया था. टाटा फाइनेंस इस पैसे को लौटाने की स्थिति में भी नहीं थी. तब रतन टाटा ने पूरे मामले को फ्रंट से लीड किया. उन्‍होंने इस पर टाटा संस के बोर्ड से बातचीत की और मामले को निपटाने के लिए हर तरह से वित्‍तीय मदद का आदेश दिया, जिस पर बोर्ड ने भी सहमति जता दी.

आनन-फानन में कर दिया 500 करोड़ का इंतजाम
रतन टाटा ने भले ही कंपनी के फंड से निवेशकों का पैसा चुकाने की बात कही थी, लेकिन कानूनी तौर पर यह सही नहीं था. हालांकि, रतन टाटा ने साफ कह दिया कि कानूनी एथिक्‍स से ज्‍यादा नैतिकता के आधार पर फैसला होना चाहिए. रतन टाटा ने तय कर दिया कि किसी भी निवेशक का पैसा डूबना नहीं चाहिए. उस समय डिजिटल पेमेंट का जमाना नहीं था, तो रतन टाटा ने साफ कह दिया कि निवेशकों तक जल्‍द पैसा पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्‍टर का इस्‍तेमाल किया जाए और देशभर में कंपनी की ब्रांच से पैसे वापस लौटाए जाएं.

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