दुनिया के महंगे ब्रांड, जो लाखों की कीमत वाली चीजें ‘बेचते’ नहीं, जला देते हैं! क्या है ये डर्टी गेम?

लग्जरी फैशन की दुनिया में एक ऐसा ‘डर्टी गेम’ छिपा है, जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सोचा होगा. यदि आपको सच पता चल आए तो आपकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहेगा. लग्जरी ब्रांड्स के कपड़े, जूते, घड़ियां या परफ्यूम खरीदना हर किसी के वश की बात नहीं होती. जहां एक अच्छी शर्ट 1,000 से 1,500 रुपये के बीच मिल जाती है, वहीं लग्जरी ब्रांड्स की वैसी ही शर्ट की कीमत लाखों में हो सकती है. घड़ियां, जूते और परफ्यूम पर भी यही बात लागू होती है. बड़ी और महंगे प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स पर कभी डिस्काउंट नहीं देतीं. अगर माल नहीं बिकता है तो उसे जलाकर नष्ट कर दिया जाता है. यही इस इंडस्ट्री का एक स्याह सच है. कंपनियां एक झटके में कई सौ करोड़ का माल नष्ट कर देती हैं.

2018 में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसे जानने के बाद लोगों में हैरानी और गुस्सा दोनों देखे गए. ब्रिटेन की प्रसिद्ध फैशन कंपनी बरबरी (Burberry) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में खुद यह खुलासा किया कि उसने करीब 28.6 मिलियन पाउंड (300 करोड़ रुपये) के कपड़े और अन्य उत्पाद जला दिए. यह सब केवल इसलिए किया गया, ताकि उनकी छवि ‘एक महंगे और स्पेशल ब्रांड’ के रूप में बरकरार रहे. यह अकेली घटना नहीं है. बरबरी ने 5 सालों में लगभग 90 मिलियन पाउंड (950 करोड़ रुपये) के अपने ही उत्पादों को नष्ट किया.

सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इतने बड़े ब्रांड्स अपने महंगे-महंगे उत्पादों को यूं ही नष्ट कर देते हैं? इसका जवाब है- सप्लाई को सीमित रखने के लिए. दरअसल, ऐसे लग्जरी ब्रांड अपने उत्पादों की कृत्रिम (आर्टिफिशियल) कमी बनाए रखना चाहते हैं. यदि उनके प्रोडक्ट आम ही उपलब्ध हो जाएंगे तो उसकी वह रेपुटेशन नहीं रहेगी, जिसके लिए उसे जाना जाता है. उदाहरण के लिए यदि किसी अमीर को बरबरी के कपड़े खरीदने हैं तो बहुत बड़े शहर के बड़े शोरूम या शॉपिंग मॉल तक जाना पड़ेगा. छोटे शहरों में बरबरी का सामान मिलेगा ही नहीं.

तो अगले साल क्यों नहीं बेचते?
इसके बाद दूसरा सवाल यह उठता है कि ठीक है, कंपनी अपने प्रोडक्ट्स की सप्लाई कम रखे, मगर जो प्रोडक्ट तैयार हैं, उन्हें भविष्य में बेचने के लिए क्यों नहीं रख लेते? जिस डर्टी सीक्रेट की बात हम कर रहे हैं, वह इसी सवाल के जवाब में छिपा है.

ये भी पढ़ें – न की होती Adidas ने वो भारी गलती, तो आज कोई न जानता Nike का नाम, अब तक पछताते होंगे मालिक

दरअसल, अमेरिका के एक टैक्स प्रावधान के अनुसार, अगर उत्पादों को निर्यात के बाद नष्ट किया जाए, तो कंपनियों को 99% टैक्स वापस मिल जाता है. इसका मतलब यह है कि कंपनियों को इन उत्पादों को कम कीमत पर बेचने की तुलना में नष्ट करना ज्यादा लाभदायक होता है. पूरा गेम पैसा कमाने और बचाने का है. पहले तो महंगे प्रोडक्ट बेचकर पैसा कमाओ, फिर अनबिके प्रोडक्ट्स को नष्ट करके टैक्स भी बचा लो.

ब्रांड को इस बात का भी डर
ऐसे ब्रांड अपने उत्पादों को इसलिए भी नष्ट कर देते हैं, ताकि उन उत्पादों की कीमतों पर पूरी तरह उसका कंट्रोल रहे. यदि वे उन्हें नष्ट नहीं करते हैं तो ग्रे मार्केट में उसकी बिक्री शुरू हो सकती है. ग्रे मार्केट उस बाजार को कहा जाता है, जहां ब्रांड्स के उत्पाद बिना उसकी अनुमति के लिए फिर से बिक्री के लिए आ जाते हैं. इसमें पुराने और नए दोनों तरह के प्रोडक्ट होते हैं.

ग्रे मार्केट में किसी भी प्रोडक्ट की कीमत उसकी असली कीमत से कम रहती है. ऐसे में लग्जरी ब्रांड्स को डर रहता है कि यदि उनके उत्पाद सस्ते में बेचे गए तो उनकी “प्रीमियम” वाली छवि को नुकसान पहुंचेगा.

आसानी से न मिलना = विशिष्टता
हर लग्जरी आइटम की खासियत उसका आसानी से उपलब्ध न होना भी होता है. मतलब उन्हें पाना आसान नहीं होता. अगर हर किसी को ये वस्तुएं सुलभ हो जाएं, तो इनकी विशिष्टता खत्म हो जाएगी. इसलिए, ब्रांड्स जान-बूझकर अपने उत्पादों की कमी बनाए रखते हैं, और जरूरत पड़ने पर करोड़ों का नुकसान उठाने के लिए तैयार रहते हैं, ताकि उनकी वस्तुएं ‘विशिष्ट’ बनी रहें.

पैसे के लिए पर्यावरण को पहुंचाते नुकसान
कंपनियों के इस डर्टी गेम का एक अन्य पहलू भी है. वह यह कि उनके ऐसे कृत्यों का पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है. कहा जाता है कि एक कॉटन शर्ट बनाने में करीब 2700 लीटर पानी लगता है, और सिंथेटिक उत्पादों को जलाने से विषैले गैसों का उत्सर्जन होता है. 2018 में बरबरी की रिपोर्ट ने इस मुद्दे को उजागर किया और खरीदार जागरूक होने लगे. इसके बाद अमेरिका में नए तरह के बिजनेस मॉडल को प्राथमिकता दी जाने लगी. लोग कुछ ऐसे ब्रांड्स की तरफ मुड़े, जो पुराने कपड़ों को लगभग नया बनाकर बेचते हैं और स्वीकार भी करते हैं कि माल पुराना है.

Tags: Business empire, Weird news

Source link