छलावा है या फायदे का सौदा No Cost EMI? जान लेंगे ये बातें तो नहीं फटकेंगे पास

हाइलाइट्स

नो कॉस्ट ईएमआई आजकल खूब लोकप्रिय है. इसे ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए पेश किया जाता है.इसमें ब्‍याज की वसूली अक्सर प्रोसेसिंग फीस के रूप में की जाती है.

नई दिल्‍ली. देश में त्योहारी सीजन का आगाज़ हो चुका है. अब ऑफर्स और डिस्‍काउंट की भी बाढ़ आई है. इन्‍हीं ऑफर्स में से एक है ‘नो कॉस्ट ईएमआई.’ खरीदारी के इस विकल्‍प में ग्राहकों को बिना एक साथ पेमेंट किए सामान खरीदने की सुविधा मिलती है. ई-कॉमर्स साइट्स या स्‍टोर्स खरीदने गए सामान की कीमत पर कोई ब्‍याज न लेने का दावा भी करते हैं. यही नहीं, बहुत से लोग यह सोचते हैं कि नो कॉस्ट ईएमआई पर 0 फीसदी ब्याज होता है. अक्सर लोगों को लगता है कि नो कॉस्ट ईएमआई पर 0 प्रतिशत ब्याज लगता है. आप बिना किसी अतिरिक्त लागत के आसान किस्तों में केवल सामान की वास्तविक कीमत का भुगतान करते हैं. लेकिन बाजार का कटु सत्य यह है कि यहां मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता. बाजार में नो-कॉस्ट ईएमआई की भी कीमत (No Cost EMI Cost) होती है. यह कीमत अक्‍सर डिस्‍काउंट का लाभ न देकर, छिपे हुए चार्ज और प्रोसेसिंग फीस के रूप में वसूली जाती है.

नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए पेश किया जाता है, लेकिन इसमें कई छिपे हुए चार्ज होते हैं जिनके बारे में ग्राहकों को जानकारी नहीं दी जाती. यह बात खुद भारतीय रिजर्व बैंक भी मान चुका है. आरबीआई (RBI) के एक सर्कुलेशन में कहा है कि कोई भी लोन ब्याज मुक्त नहीं है. 2013 का आरबीआई का एक सर्कुलर कहता है कि क्रेडिट कार्ड आउटस्टैंडिंग्स पर जीरो पर्सेंट ईएमआई स्कीम में ब्याज की रकम की वसूली अक्सर प्रोसेसिंग फीस के रूप में कर ली जाती है.

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नो कॉस्ट ईएमआई इन कारणों से पड़ती है महंगी

  • डिस्‍काउंट का लाभ नहीं : आमतौर पर खरीदारी के ‘नो कॉस्‍ट ईएमआई’ विकल्‍प का चुनाव करने पर प्रोडक्‍ट पर मिल रही छूट का लाभ कंपनी, स्‍टोर या ई-कॉमर्स वेबसाइट्स नहीं देती हैं.
  • उच्च कीमत: अक्सर दुकानदार या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उत्पाद की कीमत बढ़ा देते हैं, जिससे ग्राहक को नो कॉस्ट ईएमआई का लाभ नहीं मिलता. उदाहरण के लिए, यदि उत्पाद की कीमत ₹30,000 है, तो नो कॉस्ट ईएमआई में यह कीमत बढ़कर ₹32,000 हो सकती है.
  • प्रोसेसिंग फीस: नो कॉस्ट ईएमआई विकल्प चुनने पर अक्सर बैंक या फाइनेंसिंग कंपनियां प्रोसेसिंग फीस वसूलती हैं, जो ₹99 से लेकर ₹300 तक हो सकती है.
  • जीएसटी: नो कॉस्ट ईएमआई में ब्याज की राशि को छूट के रूप में दिखाया जाता है, लेकिन इस पर 18% जीएसटी भी लागू होता है. यह जीएसटी ग्राहकों को चुकाना पड़ता है, जिससे कुल लागत बढ़ जाती है.
  • प्री-क्लोजर फीस: यदि ग्राहक पूरी राशि पहले चुकाते हैं, तो उन्हें प्री-क्लोजर फीस या प्री-पेमेंट पेनाल्टी का सामना करना पड़ सकता है.
  • लेट पेमेंट चार्ज: समय पर भुगतान न करने पर ग्राहकों को लेट पेमेंट चार्ज भी देना पड़ सकता है.

कैश इज किंग
टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं- ‘कैश इज किंग’ (Cash is King). सामान हमेशा नकद ही खरीदें, नहीं तो कर्ज के जाल में फंस जाएंगे. नो-कॉस्ट EMI के लिए आपके पास क्रेडिट कार्ड (Credit Card) होना जरूरी है. और आप जानते हैं कि क्रेडिट कार्ड पर कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता.

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