कंपनी ग्रेच्‍युटी देने में कर रही है आनाकानी, पैसा पाने को करें यह काम

नई दिल्ली. नौकरी के दौरान कर्मचारियों को कई वित्तीय लाभ मिलते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण लाभ है ग्रेच्युटी. ग्रेच्युटी वह राशि है जो किसी कर्मचारी को नियोक्ता (Employer) द्वारा दी जाती है. यह आमतौर पर तब मिलती है जब कर्मचारी नौकरी छोड़ता है, रिटायर होता है. कर्मचारी की मृत्यु होने या दुर्घटना की वजह से नौकरी छोड़ने की स्थिति में उसे या उसके नॉमिनी को ग्रेच्युटी की रकम दी जाती है. हालांकि, कई बार नियोक्ता ग्रेच्युटी देने में आनाकानी करते हैं, जो कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 का उल्लंघन है.

अगर कोई कर्मचारी किसी कंपनी में 4 साल 240 दिन तक काम कर लेता है, तो वह ग्रेच्युटी का हकदार हो जाता है. इस स्थिति में, नियोक्ता के लिए यह अनिवार्य है कि वह ग्रेच्युटी की राशि का भुगतान करे. यदि कंपनी इससे इनकार करती है, तो कर्मचारी के पास इसे प्राप्त करने के कानूनी विकल्प मौजूद होते हैं. ग्रेच्युटी कर्मचारियों का कानूनी अधिकार है. यदि नियोक्ता इसका भुगतान करने से इनकार करता है, तो कर्मचारी को कानून के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए.

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कितने समय में मिलता है ग्रेच्युटी का पैसा?
नौकरी छोड़ने के बाद ग्रेच्युटी प्राप्त करने के लिए कर्मचारी को अपने नियोक्ता के पास आवेदन करना होता है. नियमों के अनुसार, आवेदन करने के 30 दिनों के भीतर ग्रेच्युटी की राशि बैंक खाते में जमा हो जानी चाहिए. यदि कंपनी निर्धारित समय में भुगतान नहीं करती है, तो उसे ब्याज सहित यह राशि देनी होती है.

क्या करें जब ग्रेच्युटी न मिले?
लीगल नोटिस भेजें: यदि नियोक्ता समय पर ग्रेच्युटी नहीं देता है, तो सबसे पहले उसे कानूनी नोटिस भेजें.
कंट्रोलिंग अथॉरिटी से शिकायत: नोटिस के बावजूद भुगतान न होने पर, लेबर कमिश्नर ऑफिस में शिकायत दर्ज करें. आमतौर पर, असिस्टेंट लेबर कमिश्नर इस मामले में कंट्रोलिंग अथॉरिटी होते हैं.

ग्रेच्युटी दिलाने में अधिकारी की भूमिका
अगर कर्मचारी ग्रेच्युटी का हकदार साबित होता है, तो अधिकारी नियोक्ता को आदेश देता है कि वह 30 दिनों के भीतर भुगतान करे. यदि ऐसा नहीं होता है, तो अधिकारी 15 दिनों के भीतर कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकता है.

नियोक्ता को हो सकती है सजा
ग्रेच्युटी न देने पर नियोक्ता ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के उल्लंघन का दोषी माना जाएगा. इसके लिए 6 महीने से 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. कई मामलों में, आपसी सुलह के बाद नियोक्ता को ब्याज सहित भुगतान करना पड़ता है और कभी-कभी जुर्माना भी लगाया जाता है.

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