Save capital gain tax : बजट 2024 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और सरकार के एक फैसले की काफी आलोचना हो रही है. यह फैसला प्रॉपर्टी बेचने पर होने वाले कैपिटल गेन टैक्स में से इंडेक्सेशन को हटाना है. नये नियम के मुताबिक, जहां प्रॉपर्टी बेचने वाले को प्रॉफिट ज्यादा हो रहा होता है, वहां यह टैक्स मोटी जेब काट लेता है. एक्सपर्ट्स ने इस टैक्स से जुड़ा कैलकुलेशन करते बताया है कि कैसे यह लोगों के हित में नहीं है. यह हालांकि सरकार टैक्स प्रक्रिया को आसान बनाने की दुहाई देते हुए इस फैसले को अधिकतर लोगों के लिए फायदे का सौदा बता रही है. कुछ खबरें हैं कि सरकार इस फैसले को एक या दो वर्षों तक टाल सकती है. सरकार इसे टालेगी या नहीं, यह तो हम नहीं जानते, मगर हम तीन ऐसे तरीके जरूर जानते हैं, जो आपका पूरा का पूरा टैक्स बचा सकते हैं. ये तरीके ऐसे रास्ते निकलाते हैं, जिनके जरिए प्रॉपर्टी सेल करने पर पूरा पैसा आपकी जेब में ही चला आता है.
दरअसल, सरकार ने इंडेक्सेशन तो हटा दिया है, लेकिन इनकम टैक्स एक्ट में कैपिटल गेन पर छूट देने वाले तरीके ज्यों के त्यों हैं. इनमें कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है. कोई भी भारतीय व्यक्ति टैक्स नियमों को फॉलो करके अपना टैक्स बचा सकता है. तीन तरीकों में एक सेक्शन-54, दूसरा सेक्शन-54EC, और तीसरा सेक्शन 54F है. चलिए अब यह बताते हैं कि फायदा होगा कैसे?
सेक्शन 54 के तहत उठाएं लाभ
इनकम टैक्स का सेक्शन-54 कहता है कि आप कैपिटल गेन टैक्स बचा सकते हैं. छूट का लाभ उठाने के लिए, टैक्सपेयर को प्रॉपर्टी बेचने की तारीख से 3 वर्षों के अंदर ही भारत में ही एक और रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में अपनी आय को निवेश करना होगा. घर बनाना है तो यह बेचने की तारीख से 2 वर्षों के भीतर खरीदना होगा, या फिर बेचने की तारीख से एक साल पहले तक इसके खरीद लिया गया होना चाहिए. यदि आपका कैपिटल गेन टैक्स 2 करोड़ रुपये के ज्यादा नहीं है तो आप एक नहीं, बल्कि दो प्रॉपर्टी भी खरीद सकते हैं. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि आपको जीवनभर में एक ही बार ऐसा करने का मौका मिलेगा.
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इस सेक्शन के तहत टैक्स छूट के लिए आपको 10 करोड़ की लिमिट दी गई है, हालांकि आप 10 करोड़ रुपये से अधिक की कीमत वाली प्रॉपर्टी भी खरीद सकते हैं. नई प्रॉपर्टी पर 3 साल का लॉक-इन-पीरियड अप्लाई होता है. मतलब 3 साल तक आप उसे बेच नहीं सकते.
यदि नई प्रॉपर्टी खरीदने या बनाने में समय लग रहा है तो आप सेल से हुई इनकम को कैपिटल गेन्स अकाउंट स्कीम (CGAS) में जमा कर सकते हैं. यह फाइनेंशियल ईयर का इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की तारीख से पहले किया जाना जरूरी है. ऐसा किया जाता है तो डिपॉजिट की गई रकम को नई प्रॉपर्टी अथवा एसेट की लागत माना जाता है. लिमिट 10 करोड़ ही रहती है. इस पैसे को कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है. CGAS में पैसा रखने की अच्छी बात यह है कि इस पर सेविंग्स अकाउंट की तरह ही तय ब्याज भी मिलता है. इससे मिलने वाला ब्याज पर टैक्स भी लगता है. इस तरह इस सेक्शन के तहत टैक्सपेयर कैपिटल गेन पर 10 करोड़ रुपये तक का टैक्स बचा सकते हैं.
सेक्शन 54EC का उठाएं लाभ
यदि आपने जमीन या मकान बेचकर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन बनाया है तो इस सेक्शन के तहत आप 50 लाख रुपये तक की रकम पर टैक्स बचा सकते हैं. कैपिटल गेन को आपको ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (REC), पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) या भारतीय रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (IRFC) के बॉन्ड्स में निवेश करना होता है. सेल के 6 महीने के अंदर ऐसा किया जा सकता है. एक वित्त वर्ष में 50 लाख रुपये तक निवेश किए जा सकते हैं. ये बॉन्ड्स का कूपन रेट 5.25 फीसदी होता है, जिस पर इनकम टैक्स भरना होता है. इन पंच वर्षीय बॉन्ड्स का लॉक-इन पीरियड भी 5 साल का होता है. इस पैसे का किसी भी तरीके से उपयोग नहीं किया जा सकता.
सेक्शन 54F कैसे करेगा आपकी मदद
इसमें रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी को छोड़कर बाकी सभी प्रॉपर्टीज़ पर होने वाले फायदे पर टैक्स का लाभ लिया जा सकता है. इसमें मुख्य तौर पर शेयर, म्यूचुअल फंड इत्यादी को शामिल किया जाता है. छूट पाने के लिए टैक्सपेयर को इस प्रॉपर्टी की सेल से हुई इनकम को भारत में ही एक रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में निवेश करना होगा. इसे नया एसेट कहा जा सकता है. यदि घर बनाया है तो सेल की तारीख के बाद 3 वर्ष का समय मिलता है. बना हुआ घर खरीदने पर 2 साल के भीतर निवेश होना चाहिए या फिर सेल की तारीख से एक साल पहले उसे खरीदा गया होना चाहिए.
इसकी कैलकुलेशन समझ लीजिए
गणना तीन मदों पर आधारित होती है – A, B और C.
A = ओरिजिनल एसेट बेचने पर हुआ कुल कैपिटल गेन
B = नए एसेट की लागत
C = ओरिजिनल एसेट बेचने से हुई कुल आय
फॉर्मूला है – A*(B/C)
इस सेक्शन में भी नए एसेट की अधिकतम लिमिट 10 करोड़ रुपये ही दी गई है. इसके तहत भी CGAS डिपॉजिट का विकल्प उपलब्ध है. हालांकि इस सेक्शन के तहत छूट का लाभ लेने के लिए कुछ और कंडीशनों को पूरा करना होता है.
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सबसे पहले, टैक्सपेयर के पास मूल प्रॉपर्टी बेचने की तारीख तक नए एसेट के अतिरिक्त एक से अधिक रेजिडेंशियल हाउस प्रॉपर्टी नहीं होनी चाहिए. दूसरा, टैक्सपेयर ने ओरिजिनल एसेट बेचने की तारीख से 2 वर्षों के भीतर नई संपत्ति के अलावा कोई अन्य संपत्ति नहीं खरीदी होनी चाहिए, और मूल प्रॉपर्टी की बिक्री की तारीख से 3 वर्षों के भीतर नई संपत्ति के अलावा कोई अन्य संपत्ति का निर्माण नहीं किया होना चाहिए. तीसरा, नई संपत्ति पर तीन साल का लॉक-इन पीरियड लागू होगा.
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FIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 16:07 IST