2-3 महीने की गिरावट के लिए तैयार रहें निवेशक! रमेश दमानी ने क्यों दी ये नसीहत

नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजार में अमेरिकी चुनावों के नतीजों का असर देखा जा रहा है. बीएसई सदस्य और अनुभवी निवेशक रमेश दमानी का कहना है कि बाजार में शुरुआती उत्साह के बाद अगले 2-3 महीनों तक स्थिरता या गिरावट की स्थिति देखने को मिल सकती है, इसके बाद नए उच्च स्तर की संभावना हो सकती है. दमानी के अनुसार, इस समय को बाजार में समय और मूल्य सुधार के रूप में देखा जा सकता है.

सीएनबीसी-टीवी18 से बात करते हुए रमेश दमानी ने कहा, “शायद, हमने इस साल के लिए उच्चतम स्तर हासिल कर लिया है,” उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 में निफ्टी 50 इंडेक्स में 12% की बढ़ोतरी हुई है, जबकि मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स क्रमशः 26% और 30% तक ऊपर बढ़े हैं. इस दौरान विदेशी निवेशकों (एफआईआई) द्वारा बड़ी मात्रा में शेयर बेचने के बावजूद भारतीय बाजार में यह उछाल आया है. अक्टूबर 2024 में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की निकासी के साथ यह विदेशी निवेश की दृष्टि से सबसे खराब माह रहा. दमानी ने भारतीय बाजार की स्थिरता पर विश्वास जताया और कहा कि बाजार का “साइडवेज” मूवमेंट एक स्वस्थ संकेत है.

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ट्रंप की जीत के मायने
दमानी ने अमेरिकी चुनावों के परिणामों को ‘अप्रत्याशित’ बताया. उन्होंने कहा कि डॉनल्ड ट्रंप की ‘क्लीन स्वीप’ जीत ने सभी को चौंका दिया, जबकि पोल्स में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच कड़ी टक्कर की उम्मीद जताई गई थी. दमानी का मानना है कि इस जनादेश के दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर अमेरिकी आयात पर संभावित शुल्क (टैरिफ) जैसे मुद्दों पर. ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान 20-60% तक के आयात शुल्क का सुझाव दिया था, जिससे भारतीय निर्यात भी प्रभावित हो सकता है. इसके अतिरिक्त, ट्रंप की आव्रजन पर सख्ती की नीति भारतीय कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है जो अमेरिका में व्यापार करती हैं.

भारत के लिए क्या?
हालांकि, दमानी ने कहा कि अमेरिकी कंपनियों का “चाइना+1” फैक्टर भारतीय उद्योगों के लिए अनुकूल साबित हो सकता है, क्योंकि इससे अमेरिकी कंपनियां अन्य देशों में अपने आपूर्ति श्रृंखला के विकल्प खोजने पर विचार कर सकती हैं. भारत की आईटी विशेषज्ञता को देखते हुए, दमानी का मानना है कि भारत अमेरिकी कंपनियों के लिए एक उपयुक्त विकल्प बन सकता है. रमेश दमानी ने यह भी कहा कि ट्रंप के कॉर्पोरेट कर को कम करने के वादे से उत्पादकता और रोजगार में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इससे मुद्रास्फीति भी बढ़ने की संभावना है.

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