बलवंत राय परिवार पालने के लिए लकड़ी के गोदाम में काम करते थे. उन्होंने देखा कि कारपेंटर को जानवरों की चर्बी से फर्नीचर चिपकाना पड़ता है. इस समस्या का हल निकलाने के लिए उन्होंने सिंथेटिक गम बनाने का काम शुरू किया.
नई दिल्ली. कहते हैं मेहनत करने वाला पत्थर से भी हीरा खोज निकालता है. ऐसी ही कुछ कहानी है बलवंत राय पारेख की, जिन्होंने अपनी मेहनत से 7 पीढि़यों का दुख दूर कर दिया. एक समय लकड़ी के गोदाम में चपरासी का काम करने वाले पारेख ने बिना किसी अनुभव के ही प्रोडक्ट, पैकेजिंग, मार्केटिंग और फाइनेंस का ऐसा दांव चला कि बड़े-बड़े महारथी चित हो गए. कभी परिवार पालने के लिए महीने में कुछ सौ रुपये का ही जुगाड़ हो पाता था और आज बलवंत राय के बनाए प्रोडक्ट की रोजाना बिक्री ही करीब 29 करोड़ रुपये की होती है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं फेवीकोल जैसे पसंदीदा प्रोडक्ट को बनाने वाली कंपनी पिडिलाइट (Pidilite Fevicol) के संस्थापक बलवंत राय पारेख की. हर सफलता के पीछे एक संघर्ष और हर आइडिया के पीछे एक समस्या होती है. ऐसा ही कुछ बलवंत की सफलता के पीछे भी था. लकड़ी के गोदाम में काम करते समय उन्होंने देखा कि फर्नीचर को चिपकाने के लिए जानवरों की चर्बी से बने गोंद का इस्तेमाल होता है. यह न सिर्फ काफी बदबूदार रहता है, बल्कि इसे बनाने की प्रक्रिया भी काफी जटिल थी. बस यहीं से बलवंत राय के दिमाग में आइडिया सूझा. आज उनकी नेटवर्थ करीब 90 हजार करोड़ रुपये है.
एक आइडिया ने बदल दी किस्मत
आपको बता दें कि परिवार पालने के लिए बलवंत राय ने भले ही चपरासी का काम किया, लेकिन उनके पास कानून की भी डिग्री थी और पढ़े-लिखे होने की वजह से वह कारपेंटर की इस समस्या का हल निकालने में जुट गए. आखिर उन्हें सिंथेटिक रेसिन से फर्नीचर को चिपकाने का फॉर्मूला मिल ही गया. इस तरह उन्होंने फेविकोल बनाया, जो जानवरों की चर्बी से बनने वाले गोंद के मुकाबले 10 गुना अधिक मजबूत भी थी और इसमें बदबू भी नहीं आती थी.
1959 में बनाई अपनी कंपनी
पारेख ने पहले अपना प्रोडक्ट सीधे कारपेंटर को दिया और उनके बीच हिट होने के बाद साल 1959 में डायकेम नाम से कंपनी शुरू कर दी. कुछ समय बाद इसका नाम डायकेम लाइट और फिर बदलकर पिडिलाइट (Pidilite) हो गया. इस तरह बलवंत राय ने कारपेंटर की समस्या को सुलझाने के साथ ही हिट बिजनेस भी खड़ा कर दिया. आज यह कंपनी कागज से फर्नीचर और टाइल्स से वॉटरप्रूफ छत तक चिपकाने वाला प्रोडक्ट बनाती है. सुपरगम फेविक्विक भी इसी कंपनी का प्रोडक्ट है.
सीधे कारपेंटर से शुरू किया धंधा
पारेख की बाजार पर परख काफी शानदार थी. उन्हें पता था कि ग्राहक को इससे मतलब नहीं होता कि फर्नीचर को चिपकाया जिस प्रोडक्ट से गया. उन्हें बस मजबूती से मतलब होता है और यह काम कारपेंटर का रहता है. लिहाजा बलवंत ने सीधे कारपेंटर के साथ मार्केटिंग शुरू की और कारपेंटर के साथ मीटिंग शुरू की. उन्हें आकर्षित करने के लिए साथ में नाश्ता करते और यात्राओं पर भी जाते.
बाजार की नब्ज पकड़कर लाते प्रोडक्ट
कारपेंटर के साथ लगातार संवाद से पारेख को समय रहते पता चल जाता कि बाजार में किस तरह की समस्या है और उसी के अनुरूप अपने प्रोडक्ट को तैयार करते. फर्नीचर के पानी में खराब होने की समस्या सामने आई तो पारेख ने फेविकोल मरीन नाम से प्रोडक्ट बनाया, जो फर्नीचर को पानी में खराब नहीं होने देता है.
आज 1.58 लाख करोड़ की कंपनी
पारेख की परख और जमीन से जुड़कर काम करने की लगन ने उनकी कंपनी को लगातार सफलता दिलाई. आज पिडिलाइट के प्रोडक्ट की रोजाना बिक्री करीब 30 करोड़ रुपये है. सिर्फ उनकी कंपनी पिडिलाइट की मार्केट कैप 1.58 लाख करोड़ रुपये है. इस कंपनी के शेयर 19 जून को 3,111 रुपये के भाव पर बंद हुए, जो 1 जनवरी 1999 में बाजार में लिस्ट होने के समय 6.26 रुपये के भाव पर थे.
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FIRST PUBLISHED : June 19, 2024, 18:54 IST