कभी कपड़ा मिल में किया काम, आज TCS-इंफोसिस को चुनौती देती इनकी कंपनी, नेट वर्थ 30,000 करोड़

Shiv Nadar Success Story: आज की भारतीय टेक इंडस्ट्री इस नाम के बिना अधूरी है. एक छोटे से शहर से निकलकर विश्व को अपना परिचय देने वाला यह शख्स आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. इनकी मेहनत, काम को समर्पण और दूरदर्शिता के लोग कायल हैं. कभी कपड़े की मिल में काम करने वाले इस असाधारण प्रतिभा ने देश को देश में बना पहला कंप्यूटर दिया. आज इनकी नेट वर्थ लगभग 30 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक है. नाम आपने जरूर सुना होगा, मगर पूरी इनकी कहानी शायद नहीं सुनी होगी. इस लेख में हम शिव नाडर (Shiv Nadar) के जीवन और उनके अथक परिश्रम की यात्रा पर एक नजर डालेंगे.

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव मुलाईपोझी में शिव नाडर ने जन्म लिया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. जब वे 22 साल के हुए तो दिल्ली क्लॉथ मिल्स के कैलकुलेटर डिविजन में बतौर इंजीनियर नौकरी पा गए. कोई और होता तो शायद वह संतुष्ट हो जाता, मगर शिव नाडर नहीं हुए. उन्हें कुछ खास करना था.

1976 में भारत के पास अपने घर में बने हुए कंप्यूटर नहीं थे. आईबीएम (IBM) का एकछत्र राज चल रहा था, मगर उसने भी भारत से जाने का मन बना लिया था. भारत सरकार ने एक नियम बनाया था कि विदेशी कंपनियों में 60% हिस्सेदारी स्थानीय शेयरहोल्डर्स की होगी. इस नियम से विदेशी कंपनियों में खलबली मच गई थी. लेकिन नई कंपनियों के उगने के लिए भूमि तैयार भी हो गई थी. यह वह समय था जब हिन्दुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड (HCL) का जन्म हुआ.

शिव ने बनाया भारत का पहला कंप्यूटर
1978 में शिव नाडर पहला भारतीय कंप्यूटर बनाया. इसका नाम था एचसीएल 8सी (HCL 8C). उस कंप्यूटर में रॉकवेल पीपी8 (Rockwell PP 8) माइक्रोप्रोसेसर का इस्तेमाल किया गया था. इसे बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से जमीन (मैन्युफैक्चरिंग लैंड) और 20 लाख रुपये दिए गए. हालांकि इसकी एवज मेंन 26 फीसदी स्टेक सरकार के पास चला गया. एचसीएल 8सी ही भारत का पहला कंप्यूटर था, जो ऐपल और आईबीएम के बाद आया. भारत के लिए यह गर्व की बात थी.

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भारत में बने कंप्यूटर की कीमत 2 लाख रुपये थी, लेकिन यह आईबीएम के मॉडल 1401 के मुकाबले कम थी. यह कंप्यूटर मिड-साइज की आईटी कंपनियों की जरूरतों के हिसाब से डिजाइन किया गया था. भारत में यह सफल रहा. शिव नाडर को ऐसा ही अवसर सिंगापुर में भी दिखा और उन्होंने वहां 1980 में फार ईस्ट (Fast East) कंप्यूटर्स की स्थापना की. पहले ही साल में कंपनी ने 10 लाख का रेवेन्यू बनाया और इसकी वैल्यूएशन 3 करोड़ रुपये हो गई.

अमेरिका में यूं जीती जंग
1983 तक, कंपनी ने माइक्रोप्रोसेसर, डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम, और क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर बनाना शुरू कर दिया. यहीं पर सरकार द्वारा एक अहम घोषणा की गई. 1984 में सरकार ने कंप्यूटर पार्ट्स को विदेशों से मंगवाने (इम्पोर्ट) की अनुमति दे दी. इसके 3 सप्ताह के भीतर ही एचसीएल ने यूनिक्स (UNIX) आधारित पर्सनल कंप्यूटर बिजीबी (BusyBee) बना दिया. केवल 2 वर्षों के अंदर ही यह कंप्यूटर सुपरहिट हो गया. इसी सफलता के बूते 1989 में शिव नाडर ने अमेरिका के बाजार का रुख किया.

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अमेरिका में पर्यावरण को बचाने की दुहाई देते हुए बिजीबी कंप्यूटर को क्लीयरेंस नहीं दिया गया. तब शिव नाडर को समझ में आया कि यदि वे किसी बड़ी अमेरिकी कंपनी के साथ पार्टनरशिप कर लें तो काम हो सकता है. 1991 में HCL का HP के साथ समझौता हो गया. HP की फुल फॉर्म Hewlett Packard है और यह एक बड़ी अमेरिकी कंपनी है. एचपी के साथ समझौते के बाद तो गाड़ी ऐसी दौड़ी कि दौड़ती ही चली गई.

2001 तक, एचसीएल भारत की नंबर 1 डेस्कटॉप कंपनी बन चुकी थी. आईपीओ लाया गया और उस समय यह 27 गुना सब्सक्राइब हुआ. आईपीओ के दौरान कंपनी को 20,000 करोड़ की बोलियां मिलीं. आईपीओ सुपरहिट रहा. उसके बाद कंपनी ने अपने कदम बढ़ाने जारी रखे.

आर्थिक मंदी में किसी को नहीं निकाला
2008 आया. वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी छा गई. कई कंपनियों को ताले लगाकर घर में बैठना पड़ा. दुनियाभर में लाखों लोग बेरोजगार हो गए. लेकिन इस मुश्किल समय में शिव नाडर ने एचसीएल से किसी एक भी कर्मचारी को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया. चारों तरफ उनकी तारीफ हो रही थी. 2010 में कंपनी का रेवेन्यू 12,565 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था और प्रॉफिट 2,072 करोड़ रुपये के आंकड़े को छू गया.

HCL ने ग्रोथ के एक्सेलेटर पर पैर रखा हुआ था. कंपनी ने 44 देशों तक अपने पांव जमा लिए थे. 2018 में इसका रेवेन्यू 60,427 करोड़ तक पहुंच गया, जिसमें से 69 प्रतिशत हिस्सा केवल सॉफ्टवेयर बिजनेस से आया. रेवेन्यू का 92 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका और यूरोपीय देशों से आया. यह पल भारत के लिए और भी गौरवभरा रहा, क्योंकि भारत की मिट्टी में जन्म लेने वाली कंपनी के बिना दुनियाभर की आईटी कंपनियों का काम नहीं चल सकता था. भारत ने बता दिया कि वह केवल सांप-सपेरों का देश नहीं है, बल्कि अब उसके ‘माउस की चटक’ दुनियाभर में गूंजती है.

शिव नाडर की नेट वर्थ
आज एचसीएल टेक्नोलॉजीज़ भारत की तीसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है. इसका मार्केट कैप 4,25,923.31 करोड़ रुपये का है. इंफोसिस का मार्केट कैप 7 लाख करोड़ से थोड़ा अधिक है. पहले नंबर पर टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) है, जिसका मार्केट कैप 15 लाख करोड़ से कुछ अधिक है. कंपनी में 60.81 प्रतिशत हिस्सेदारी प्रोमोटर्स की है, जबकि 19.65 फीसदी हिस्सा विदेशी बड़े निवेशकों के पास है. भारत के घरेलू बड़े निवेशक भी इसमें लगभग 15 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. पब्लिक के पास महज 4.56 प्रतिशत हिस्सेदारी है. फोर्ब्स की रिच लिस्ट के मुताबिक, इस समय शिव नाडर की नेट वर्थ लगभग 30 हजार करोड़ (29,40,39,32,80,000) रुपये है. डॉलर में 35.2 बिलियन.

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