गाजियाबाद: गाजियाबाद के सिकंदरपुर गांव में असीम रावत ने आईटी डायरेक्टर की नौकरी छोड़ दी थी. इसके बाद उन्होंने डेयरी फॉर्म का काम शुरू किया. उन्हें हर महीने 4 लाख रुपये की नौकरी मिलती थी. लेकिन एक दिन उन्होंने टीवी में गायों के अस्तित्व को लेकर हो रही एक बहस देखी. यही वो दिन था जब असीम ने नौकरी छोड़ पशुपालन करने का फैसला लिया.
4 लाख रुपये की नौकरी छोड़ी
अमेरिका समेत कई देशों में काम कर चुके असीम रावत ने आईटी सेक्टर में 14 साल की नौकरी को अलविदा कह दिया. उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा पशुपालन के क्षेत्र में लगाने का निर्णय लिया. एचपी में 11 साल तक डायरेक्टर के पद पर रहने वाले असीम ने जब अपने परिवार को नौकरी छोड़ने की बात बताई, तो हर कोई हैरान रह गया. उनके पिता ने निराशा जताते हुए कहा, ‘अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर अब तुम गाय पालोगे.’ लेकिन असीम के इरादे अटल थे.
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2 गायों से 1000 गोवंश तक का सफर
असीम रावत ने गाजियाबाद के सिकंदरपुर गांव में दो देशी गायों के साथ ‘हेथा डेयरी’ की शुरुआत की. आज इस डेयरी में 1000 से अधिक गोवंश हैं, जिनमें गाय, बछड़े, बछिया और सांड शामिल हैं. असीम ने यह साबित कर दिया कि देशी गायों के माध्यम से भी लाभदायक व्यवसाय किया जा सकता है. उन्होंने बुलंदशहर में ‘हेथा नंदीशाला’ और उत्तराखंड के चंपावत में एक और डेयरी केंद्र स्थापित किया, जहां विशेष रूप से उत्तराखंड की बद्री नस्ल की गायों पर काम हो रहा है.
करते हैं 90 से अधिक प्रोडक्ट का रोजगार
असीम रावत का सपना सिर्फ दूध उत्पादन तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने गायों के गोबर और गोमूत्र से जैविक खेती की शुरुआत की और 90 से अधिक उत्पाद तैयार किए, जिनमें दवाइयां और खाद्य पदार्थ शामिल हैं. ये उत्पाद न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं. हेथा डेयरी ने कोरोना काल में भी अपनी गतिविधियों को जारी रखा. आज असीम रावत ने 80 से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया है और वे हर महीने 8 लाख रुपये वेतन के रूप में वितरित करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 21, 2024, 11:49 IST