Success Story: हलवाई का बेटा, ट्यूशन पढ़ाकर किया गुजारा, खड़ी कर दी ₹29,787 करोड़ की कंपनी

नई दिल्ली. मंजिल उन्हीं को मिलती है, जो रास्ते की मुश्किलों की परवाह किए बिना चलते रहते हैं. ऐसी ही कहानी बंधन बैंक (Bandhan Bank) की नींव रखने वाले चंद्रशेखर घोष (Chandra Shekhar Ghosh) की है. गरीबी में बचपन बीताने वाले घोष की सफलता की कहानी लोगों के लिए प्रेरणादायक है. 8 अप्रैल तक कोलकाता मुख्यालय वाले बंधन बैंक की मार्केट कैपिटल 29,787 करोड़ रुपये है. हाल ही में घोष ने बैंक के सीईओ पद से इस्‍तीफा दिया है.

आश्रम में रहते हुए बच्चों को पढ़ाकर किया गुजारा
साल 1960 में अगरतला (त्रिपुरा) के एक गरीब परिवार में घोष का जन्म हुआ था. घोष के पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे. मुश्किलों के बावजूद घोष ने अपनी पढ़ाई पूरी करने की ठानी. घोष अपनी आगे की पढ़ाई के लिए बांग्लादेश चले गए. उन्होंने 1978 में ढाका विश्वविद्यालय से स्टेटिस्टिक्स में डिग्री हासिल की. ​​घोष ने एक आश्रम में रहते हुए बच्चों को पढ़ाकर अपना भरण-पोषण किया.

1985 में BRAC में मिली नौकरी
1985 में चंद्र शेखर के जीवन में भारी बदलाव आया जब उन्हें बांग्लादेशी इंटरनेशनल डेवलपमेंट नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (BRAC) में नियुक्त किया गया. यहां उन्होंने देखा कि कैसे छोटी-सी आर्थिक सहायता भी ग्रामीण महिलाओं के जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकती है. इसके बाद घोष ने इस मॉडल को भारत में अपनाने का फैसला लिया.

2001 में बनाया ‘बंधन’
1997 में कोलकाता लौटने के बाद घोष ने विलेज वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू किया और बाद में उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू की। महिलाओं को पैसा उधार देने के इरादे से उन्होंने 2001 में एक माइक्रोलेंडिंग संगठन बंधन की स्थापना की. इस कंपनी के लिए चंद्रशेखर ने दोस्तों और रिश्तेदारों से 2 लाख रुपये उधार लिए. 2009 में बंधन को एक एनबीएफसी के रूप में रजिस्टर्ड कराया गया. साल 2015 बैंकिंग लाइसेंस मिला और नाम बदलकर ‘बंधन बैंक’ हो गया.

FIRST PUBLISHED : August 10, 2024, 20:41 IST

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