बिलासपुर की पूजा विश्वकर्मा ने घर से शुरू की मोती की खेती, मोती बेचकर सालाना कमा रही 3 लाख से 4 लाख रुपए 

बिलासपुर : बिलासपुर की पूजा विश्वकर्मा को पर्ल क्वीन के नाम से जाना जाता है. उन्होंने अपने घर के एक छोटे से कमरे में पर्ल फार्मिंग यानी सीप से मोतियों की खेती का काम शुरू किया. फिर इस अनोखे उद्यम में सफलता मिलने के बाद अब वह इसे बड़े स्तर पर कर रही हैं. अब पूजा ऑनलाइन और ऑफलाइन ऑर्डर में भी काम करना शुरू कर दिया, जिससे आय अधिक होने लगी. फिलहाल, वह इस व्यवसाय से सालाना 4 लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं.

पूजा बताती है कि समुद्र से निकाले जाने वाले प्राकृतिक मोतियों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनकी सीमित उपलब्धता के कारण अब पर्ल फार्मिंग को एक अच्छा विकल्प माना जा रहा है. इस प्रक्रिया में सीपियों से मोती तैयार किए जाते हैं, जो समय और धैर्य मांगता है. सीप से मोती निकालने की पूरी प्रक्रिया में करीब 8 महीने का समय लगता है. पूजा ने बताया कि वह पिछले 7 वर्षों से इस काम में जुटी हैं.

बहन के सपने को पूरा करने शुरू किया पर्ल फार्मिंग
इसे 2015 में अपनी बहन के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से शुरू किया था. पूजा ने बताया कि उनकी बहन का सपना था कि वह पर्ल फार्मिंग का काम करेंगी, लेकिन उनका असमय निधन हो गया. बहन की इस आकांक्षा को साकार करने का बीड़ा पूजा ने उठाया और इस तरह उन्होंने पर्ल फार्मिंग की शुरुआत की. उन्होंने शुरुआत में गावों के तालाबों से सीप इकट्ठा किए और घर के आंगन में ही उनका पालन कर मोतियों का उत्पादन शुरू किया. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और अब वे सालाना चार लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रही हैं.

अब बड़े पैमाने पर पर्ल फार्मिंग का विस्तार
पूजा ने बढ़ती मांग को देखते हुए मस्तूरी क्षेत्र में आधे एकड़ जमीन में पर्ल फार्मिंग का प्लांट लगाने की योजना बनाई, ताकि वह बड़े स्तर पर इस काम को कर सकें. इस काम में सफलता के साथ ही पूजा ने समाज सेवा की भावना से प्रेरित होकर दूसरों को भी निशुल्क प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है, जिससे और लोग इस उद्यम से जुड़ सकें.

मोती निकालने में लगता है 8 महीने का समय 
पर्ल फार्मिंग में मोतियों को तैयार करने की प्रक्रिया बेहद संवेदनशील होती है. सबसे पहले सीपियों के पेट में एक न्यूक्लियस दाना डाला जाता है, जिसे एक प्रकार की सर्जरी कहा जा सकता है. इसके बाद सीपियों को केमिकल में डुबोकर उन्हें टंकियों या तालाबों में करीब 8 महीने तक रखा जाता है. इस दौरान सीपियां उस न्यूक्लियस को मोती में परिवर्तित करती हैं. आठ महीने बाद चीरा लगाकर मोती निकाला जाता है.

सीपियों के पोषण से बनते हैं उच्च गुणवत्ता के मोती
सीपियों को बेहतर पोषण देने के लिए उन्हें तालाब, टंकियों या गहरे गड्ढों में रखा जाता है, जहां मछलियों के दाने और जमी हुई काई व मिट्टी को ये सीपियां खाती हैं. इससे मोतियों की गुणवत्ता बेहतर होती है और उच्च क्वालिटी के मोती प्राप्त होते हैं.

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