उंगलियों के इशारे पर झामलाल और मनरखनी को नचाते हैं फिरंगी, सालभर लोग करते हैं इंतजार, देखें वीडियो

बलिया: मनोरंजन के लिए मनुष्य हमेशा से नए-नए साधन उपकरण ढूंढता रहा है. कठपुतली का नृत्य भी उन्हीं में से एक था. बलिया के ददरी मेले में महर्षि भृगु द्वारा कराया जाने वाला कठपुतली नृत्य एक बड़ा आकर्षण हुआ करता था. अब तो मनोरंजन के कई साधन और उपकरण आ गए हैं.  इनके बीच आज भी मुंह से बजाई जाने वाली बांस की पिपिहरी और हारमोनियम पर गीत गाकर कठपुतली नचाने की कला को पसंद करने वाले आज भी हैं. कठपुतली नृत्य देखने के लिए ददरी मेले का लोग एक साल तक इंतजार करते हैं. आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं.

कलाकार फिरंगी विश्वकर्मा ने बताया कि वो जौनपुर जिले के मीरगंज बंधवा के रहने वाले हैं. उनके साथ उनकी पत्नी चिंता देवी हारमोनियम पर गाना गाती हैं और फिरंगी जी कठपुतली नचाते हैं. उन्होंने कहा कि, यह काम वो बचपन से करते आ रहे हैं और इस मेले में 20 वर्ष से लोगों का मनोरंजन आकर कर रहे हैं. कठपुतलियों में एक ढोलक बजाता हुआ बुड्ढा है जिसे झामलाल नाम दिया गया है और दूसरा नृत्य करने वाली औरत है जिसे मनरखनी कहा जाता है. ददरी मेला शुरू है जो एक महीने तक चलेगा.

प्राचीन स्मृति को जीवंत करता है कठपुतली नृत्य
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि “यह कठपुतली नृत्य आज से 50 वर्ष पूर्व की स्मृति को जीवंत करता है”. कठपुतली नृत्य को विलुप्त श्रेणी के नृत्य नाटिका में रखा गया है. सरकार इसको पुनर्जीवित करने का प्रयास भी कर रही है. 20 वर्ष से यह दोनों कलाकार इस ददरी मेला में देखे जाते हैं. इनका इंतजार बलिया वालों को भी बेसब्री से रहता है.

इस कला को सीखना एक बड़ी साधना
वीडियो में आप जो कठपुतली नृत्य देख पा रहे होंगे वह बुजुर्गों को 50 साल पहले के दौर की याद दिलाता है. कठपुतली को उंगलियों में धागा बांधकर नचाया जाता है. काफी लंबे अभ्यास के बाद आदमी कठपुतली नचाना सीख पाते हैं.

निष्कर्ष: कठपुतली की परंपरा को अध्यात्म से भी जोड़ा जाता है. पुरातन काल में लोग काठ की प्रतिमाएं बना कर अपने पूर्वजों का सम्मान करते थे. इसी परंपरा से निकलकर यह कठपुतली का नृत्य मनोरंजन के रूप में लोगों के सामने आया. इसे एक बार सभी को देखना चाहिए और इसकी भावनाओं को समझना चाहिए.

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