कौन हैं वो यक्ष और यक्षिणी जो रिजर्व बैंक की रक्षा करते हैं, क्या उनकी कहानीरिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा पर ये मूर्तियां 1960 में लगाई गईंतत्कालीन पीएम नेहरू चाहते थे कि इनके जरिए भारतीय संस्कृति की झलक दिखे
संजय मल्होत्रा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नए गर्वनर बने हैं. भारतीय रिजर्व बैंक दुनिया के मजबूत केंद्रीय रेगुलेटरी बैंकों में है. दिल्ली में जब उसके शानदार भवन में अगर जाएं तो उसके द्वार पर दो विशालकाय यक्षों की जोड़ी रखवाली करती मिलती है. दौलत का आखिर यक्षों से क्या कनेक्शन है. क्यों इन्हें रिजर्व बैंक का द्वारपाल बनाया गया है.
भारतीय रिजर्व बैंक देश का खजाना रखता है. विदेशी मुद्रा का भंडार यहीं जमा रहता है. रिजर्व बैंक की मुंबई और नागपुर ब्रांच सोने की सिल्लियां संभालकर रखती है. तो दिल्ली का रिजर्व बैंक दरअसल पूरे देश में मुद्रा रेगुलेशन और नीतियां बनाने के साथ भारतीय बैंकों पर निगरानी का काम करता है. विदेशी मुद्रा विनिमय का काम भी यहां से होता है.
तो क्या आपको मालूम है कि भारतीय मुद्रा को संभालने और चलाने वाले रिजर्व बैंक को अपने मुख्य द्वार पर दो यक्षों की जरूरत क्यों पड़ गई. ये यक्ष कौन हैं और भारतीय समृद्धि और दौलत में वो क्या मतलब रखते हैं. ये यक्ष और यक्षिणी हैं, जो भाई और बहन हैं.
कौन हैं पत्थर के दो भव्य देवता
भारतीय रिजर्व बैंक की इमारत के प्रवेश द्वार पर एक पुरुष और एक महिला की दो बड़ी भव्य मूर्तियां हैं, जो अपने हाथ में पैसों से भरा एक थैला पकड़े हुए हैं. ये यक्ष और यक्षिणी हैं, जो धन और समृद्धि के देवता हैं. वो भारत के सेंट्रल बैंक के द्वार के लिए सबसे सटीक द्वारपाल हैं. दिल्ली के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वार पर बाहर ये बड़े आकार की प्रतिमाएं 1960 में स्थापित की गईं थीं.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गार्ड यक्ष और यक्षिणी. (Courtesy RBI)
नेहरू चाहते थे कुछ ऐसा बनाया जाए
इसे प्रसिद्ध मूर्तिकार राम किंकर बैज ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों से प्रेरणा लेकर बनाया था. दरअसल भारत के पहले प्रधानमंत्री चाहते थे कि भारतीय शासकीय अंगों से जुड़ी संस्थाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ा जाए. इसी वजह से भारत की तमाम महत्वपूर्ण संस्थाओं के टैग वाक्य संस्कृत में रखे गए.
भारतीय कला और स्वेदशीकरण की उनकी कल्पना को साकार करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारपाल यक्ष भाई-बहन यक्ष और यक्षिणी को बनाया गया.
क्या होते हैं यक्ष
यक्ष एक प्रकार का पौराणिक चरित्र हैं. यक्षों को राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते हैं. माना जाता है कि शुरू में दो प्रकार के राक्षस होते थे; एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाये तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये. कुबेर भी राक्षस ही था लेकिन यक्ष प्रजाति का.
कुबेर के खजाने की रक्षा करते थे यक्ष
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जादू की शक्ति’. कुबेर के खजाने की रक्षा यक्षों की टोली करती थी, जो बहुत ताकतवर होती थी. महाभारत में कई जगह यक्षों का जिक्र होता है.
यक्षों की पूजा करने की परंपरा प्राचीन भारत में बहुत पहले से चली आ रही है. भारतीय संस्कृति में यक्षों और यक्षिणियों की पूजा बहुत प्राचीन समय से की जाती रही है. 300 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व के दौरान वो हमारे धार्मिक परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा थे.
पूरे भारत में पाई जाती हैं उनकी मूर्तियां
पूरे उत्तर भारत में यक्षों और यक्षिणियों की बड़ी संख्या में पत्थर की मूर्तियां पाई गई हैं. इसे यक्ष पंथ भी कहा जाता था. हालांकि, 200 ईसा पूर्व के कुछ समय बाद, यक्ष पंथ हिंदू, बौद्ध और जैन परंपराओं में शामिल हो गया. यक्षों को हिंदू पौराणिक कथाओं में धन के देवता कुबेर के रूप में शामिल किया गया. जबकि यक्षणियों को देवताओं की परिचारिका आत्माओं के तौर पर जाना गया.
जैन धर्म में यक्ष और यक्षिणियों का खास महत्व था
सांची, बहरुट और मथुरा के प्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों के चारों ओर कई यक्षी आकृतियां उकेरी गईं. जैन धर्म में भी यक्षणियों का महत्व था. 24 तीर्थंकरों में हरएक के साथ एक यक्षी जुड़ी हुई थी, जिनमें सबसे प्रमुख अंबिका थी, जो 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिणी थी. जैन गुफाओं और मंदिरों में यक्षिणियों की कई नक्काशी और मूर्तियां पाई जाती हैं.
हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया यक्ष और यक्षिणियों को नकारात्मक तरीके से भी लिया जाने लगा. इन्हें अक्सर दुष्ट आत्माओं के रूप में चित्रित किया जाता था. अब भी अगर देश के संग्रहालयों में जाएं तो उनकी आदमकद मूर्तियां देखने को मिलेंगी.
दक्षिण में इन्हें दुष्ट ताकतें माना गया
दक्षिण में केरल में यक्षियों ने अधिक दुष्ट रूप धारण किया. अक्सर उन्हें महिला पिशाच के रूप में चित्रित किया जाता है, जो अकेले यात्रियों का शिकार करती हैं. ऐसा माना जाता था कि अप्राकृतिक मृत्यु से मरने वाली युवतियां यक्ष बन जाती हैं. तिरुवनंतपुरम के प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर के कल्लरा बी (बंद तहखाना) में एक यक्षी की आत्मा गहरे ध्यान में लीन बताई जाती है.
यक्ष कहां से आए ये एक रहस्य
हालांकि यक्षों की उत्पत्ति अब भी रहस्य में डूबी हुई है. यक्षियों की मूर्तियां उनकी सुंदरता और शालीनता के लिए प्रसिद्ध हैं. वे भारतीय मूर्तिकला और कला के कुछ बेहतरीन उदाहरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं.
बहरहाल रिजर्व बैंक के बाहर यक्षों की ये प्रतिमाएं प्रतीकात्मक भी हैं, जो ये संकेत देती हैं कि देश की दौलत और समृद्धि की रक्षा उनके द्वारा की जा रही है.
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FIRST PUBLISHED : December 10, 2024, 16:33 IST